बुधवार, 20 अप्रैल 2011

बदलते परिदृश्य में नई सहस्त्राब्दी का भारत--डॉ. वीरेन्द्र सिंह यादव



बदलते परिदृश्य में नई सहस्त्राब्दी का भारत
डॉ अजीत सिंह
पुस्तक - बदलते परिदृश्य में नई सहस्त्राब्दी का भारत
सम्पादक - डॉ. वीरेन्द्र सिंह यादव
प्रकाशक - राधा पब्लिकेशन, 4231/1 अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली
मूल्य - 750-00
पृष्ठ : 18+398=416
ISBN: 81.86400.001.X

21वीं सदी का आगमन कई मायनों में अत्यन्त महत्वपूर्ण रहा है। मानव-जीवन के विविध पक्षों पर, उसकी सोच पर, जीवन-शैली पर 21 वीं सदी का प्रभाव स्पष्ट रूप स देखा गया है। समाज का निर्माण व्यक्तियों की आपसी सामूहिकता और सह-सम्बन्ध से होता है। स्वाभाविक है कि व्यक्तियों के ऊपर होते प्रभावों और परिवर्तनों का असर समाज पर, देश पर भी होना था। ‘बदलते परिदृश्य में नई सहस्त्राब्दी का भारत’ कैसा होगा, उसके विचार-बिन्दु क्या होंगे, उसकी परिवर्तन यात्रा किन-किन पड़ावों से होकर गुजरेगी... आदि-आदि मुद्दों को डॉ0 वीरेन्द्र सिंह यादव ने अपने सम्पादन में सभी के सामने रखा है।
21वीं सदी के भारत के बदलते स्वरूप को उन्होंने किसी एक बँधे-बँधाये अथवा विशेष विषय के आध्ाार पर रेखांकित नहीं किया है वरन् इसको एक प्रकार का विस्तार देते दिखे हैं। आतंकवाद, नक्सलवाद, मानवाध्ािकार, आपदा प्रबन्धन एवं ग्लोबल वॉर्मिंग, आन्तरिक सुरक्षा जैसे राष्ट्रीय समस्यागत मुद्दों को आधार बनाकर प्रस्तुत किया है तो विज्ञान और प्रौद्योगिकी, पंचायती राजव्यवस्था, संचार माध्यम जैसी विकासपरक स्थितियों को भी सामने रखा है। इन विषयों और ज्वलन्त बिन्दुओं के अतिरिक्त डॉ0 वीरेन्द्र सिंह यादव साहित्य, संगीत, स्त्री-चिन्तन, पारिवारिक विघटन जैसे बिन्दुओं पर अपनी पैनी सम्पादकीय दृष्टि बिखेरते दिखते हैं।
कुल 73 लेखों के विशाल संग्रह की शुरुआत जीवन के लिए महत्वपूर्ण स्वीकारे गये चिकित्सा क्षेत्र से करते हुए पुस्तक का समापन संचार माध्यमों की कल्याणकारी योजनाओं पर होता है। यह गहन सम्पादकीय दृष्टि का ही परिचायक है कि लेख चयन के अतिरिक्त उनक संयोजन पर भी विशेष ध्यान दिया गया है। चिकित्सा विज्ञान का परिवर्तित स्वरूप और इसमें संगीत तथा मंत्र विज्ञान की सार्थकता को सिद्ध करती स्थितियों का समावेश है तो मानव की जीवन-शैली में लोक साहित्य, मंत्रों एवं वैदिक सूत्रों की महत्ता की सारगर्भित जानकारी है। 21वीं सदी की आधुनिक स्थिति में भी लोक की स्वीकार्यता, वैदिक संस्कृति की महत्ता भारतीय संस्कृति के उच्चीकृत होने के संकेत हैं।
साहित्य के द्वारा डॉ0 वीरेन्द्र सिंह यादव ने शिक्षा को, स्त्री-चिन्तन को सहेजा है। वे उच्च शिक्षा में नीति की गुणवत्ता का प्रश्न खड़ा करते हुए इसके मुद्दे और विकल्पों को तलाशते दिखते हैं। शिक्षा क्षेत्र में समस्याएँ 21वीं सदी की सबसे बड़ी समस्या है, इससे निपटने के लिए सरकारी तन्त्र क्रियाशील है तो गैर-सरकारी तन्त्र भी अपनी भूमिका का निर्वाह कर रहा है। इसी विषय के आधार पर नैतिक मूल्यों के अध्ययन, शिक्षा में मानवाध्ािकार, यौन शिक्षा की आवश्यकता आदि पर भी महत्वपूर्ण विचारों का संकलन कर इनकी उपादेयता को सिद्ध करने का प्रयास किया गया दिखता है।
21वीं सदी मात्र आधुनिकता, स्वच्छन्दता, भौतिकवाद, उच्छृंखलता आदि से भरी हुई ही नहीं है। इस कालखण्ड में भी भारतीस संस्कृति का पोषण-संवर्द्धन लगातार किया जा रहा है। बुन्देली लोक-साहित्य, लोक-कला, लोक-गीत, मनुस्मृति और याज्ञवल्क्यस्मृति की प्रासंगिकता आदि जैसे विषयों का संकलन सम्पादक की उस विस्तृत और सूक्ष्म दृष्टि को दर्शाता है जो आधुनिकता का विस्तार देखता तथा सहेजता है तो लोक की सूक्ष्मता को भी अंगीकार करता है। विस्तृत सोच के साथ लघु का समावेश और संरक्षण इस पुस्तक की विशालतम उपलब्धि है जिसे कम से कम सहेजा तो जा ही सकता है।









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