शनिवार, 16 फ़रवरी 2013

भ्रष्टाचार का मनोविज्ञान : कुछ अक्स ,कुछ अंदेशे
                  
डा0 मनजीत सिंह
जवाहर नवोदय विधालय,
मल्हार, बिलासपुर (छ00)-495551
पुस्तक का नाम- भ्रष्टाचार का मनोविज्ञान : कुछ अक्स ,कुछ अंदेशे

संपादक-डा0 वीरेन्द्रसिंह यादव
पेज-14+311-345
प्ैठछ.978.93.80147.91.8
संस्करण-प्रथम.2011,मूल्य-895.00
पैसिफिक पबिलकेशन्स-एन.187 शिवाजी चौक, सादतपुर एक्सटेंशन,दिल्ली-110094
           समाज की ज्वलंत समस्याओं को केन्द्र में रखकर अपना सृजन करने वाले डा0वीरेन्द्रसिंह यादव ने आज वैशिवक परिदृश्य की सबसे गम्भीर समस्या भ्रष्टाचार को केन्द्र में रखकर अपनी लेखनी के द्वारा उसके श्वेत एवं श्याम पक्षों को भारत के विद्वान प्राध्यापकों के मतों से प्रमाणित करवाना चाहा है। आम आदमी भ्रष्टाचार के बारे में क्या सोचता एवं समझता  है। इस संपादित पुस्तक के माध्यम से इसका समन  एवं विवेचित, विश्लेषित करने की कोशिश की गयी है। यह पुस्तक उच्च शिक्षा जगत के बत्तीस विद्वानों के विचारों को समेटे हुए पाच उपशीर्षकों भ्रष्टाचार की पृष्ठभूमि एवं परिणाम,राजनीति, प्रशासन, अर्थव्यवस्था में भ्रष्टाचार के बदलते परिदृश्य, भ्रष्टाचार निवारण के संवैधानिक एवं व्यावहारिक प्रावधान, भ्रष्टाचार के विविध मुखैटों में विभाजित कर विषय सामग्री को अलग-अलग कर विस्तृत कलेवर प्रदान किया गया है। अपने-अपने क्षेत्र के लब्ध प्रतिष्ठ विद्वानों के द्वारा भ्रष्टाचार के बढ़ते विविध परिदृश्यों को विद्वानों ने बेनकाब किया है।
    डा0 वीरेन्द्र सिंह यादव सक्रिय लेखन से जुड़े होने के साथ ही आम आदमी के इर्द-गिर्द को चिंतन का आधार बनाकर सामाजिक विसंगतियों पर सदैव प्रहार करते नजर आते है। इसी तरह का प्रयास है यह पुस्तक में डा0 यादव करते हैं। देश के प्रति निष्ठा रखने वाले, भविष्य में कुछकर गुजरने  वालो तथा भ्रष्टाचारियों के प्रति कैसा सलूक किया जाए एवं इनके लिए कैसी सजा का प्रावधान हो इसके साथ ही नौकरशाही को कैसे नियनित्रत किया जाये, प्रस्तुत पुस्तक एक आइने का कार्य करती नजर आती है।
   सम्पादक की मान्यता है कि आजादी मिलने के बाद से भारत में जब पूंजी निवेश एवं नियोजन प्रकि्रया प्रारम्भ हुर्इ जिससे प्रशासन में नौकरशाही, व्यापार एवं प्रबंधन, एन0 जी00 तथा नेताओं में ऐसे वर्ग का विकास हुआ जिसमें पैसा के लेन-देन(रिश्वत खोरी) की संभावना एवं संख्या बढ़ने लगी । और इसकी संख्या इतनी बढ़ती गयी कि वर्तमान की बात करें तो आज देश सर्वत्र भ्रष्टाचार के जाल से आच्छादित हो गया है अर्थात भ्रष्टाचार देश की व्यवस्था की रग-रग में बस गया है।  अब ऐसा प्रतीत होने लगा है कि व्यवस्था के अन्दर बैठे लोगों तथा व्यवस्था के बाहर बैठे लोगों ने इसे स्वीकार सा कर लिया है। राष्ट्रीय आचरण के रोम-रोम में व्याप्त, एक साधारण चपरासी से लेकर प्रथम श्रेणी के आफीसर, कर्मचारी, बाबू, क्लर्क, व्यवसायी नेता, मन्त्रीआफिस के बाहर एजेन्ट, राजस्व विभाग के बाहर दुकानदार या फिर थानों का बंधा हप्ता अर्थात भ्रष्टाचार कहाँ नहीं है। जैसे तुलसी दास जी ने अपने राम की व्याप्त हर चर-अचर, सजीव-निर्जीव आदि में बतार्इ है वैसे ही हमारे यहाँ भ्रष्टाचार ने वह स्थान ग्रहण कर लिया है। पहले तो भ्रष्टाचारियों को पकड़े जाने का भय होता था, अब पकड़े नहीं जाने पर अफसोस जताते हैं। पकड़े गये तो हीरो। और यदि पकड़े गए नेता जेल गए तो मंत्री। अर्थात आज भ्रष्टाचार ने सामाजिक सुचिता को शून्य पर ला खड़ा कर दिया है। ऐसी सिथति में र्इमानदार और सत्यवादी व्यकित कैसे जी पा रहे हैं, यह एक चमत्कार है,मिरेकल है । वर्तमान भारतीय समाज में भ्रष्टाचार अपने विकराल रूप में इस तरह फैल चुका है कि लगभग हर तीसरा व्यकित पैसा कमाने को ही महत्वपूर्ण मानता है उसके लिए साधन की पवित्रता कोर्इ खाश मायने नहीं रखती क्योंकि हमारे देश में भ्रष्टाचार अब सामाजिक आतंकवाद का रूप ले चुका है।
            डा0 वीरेन्द्र सिंह यादव का मानना है कि भ्रष्टाचार के ये विविध रूप चाहे वह ठेकेदारी को लेकर हुए हाें या काले धन की समस्या से घटित हुए हों या सत्तापक्ष की असीमित शकितयों के दुरूपयोग के आधार पर हुए हाें या संस्थागत, नौकरशाही की आड़ में हुए हों इन सभी में कहीं न कहीं हमारी नीति एवं नियति की खोट की वजह से ऐसा होता आया है और वर्तमान में ऐसा हो रहा है। भ्रष्टाचार के इस उदय के कारणों में हम व्यकितगत दोषी होने के साथ-साथ हमारे राजनीतिक दर्शन में कर्इ ऐसी विसंगतियां हंै जो राष्ट्रहित के कार्यक्रमों और नीतियों की अपेक्षा अपने हित में ही अधिक विश्वास करते हंै। बेहतरीन शोध लेखों के संग्रह के साथ उम्दा कागज, बेहतरीन छपार्इ, मजबूत जिल्द और मुनासिब करमत के साथ।
       हमें उम्मीद है कि शिक्षित युवा ही नहीं बलिक शिक्षा जगत से सम्बद्ध ,विद्वतजनों व समाज के प्रबुद्ध नागरिकों को  भ्रष्टाचार जैसे ज्वलंत विषय पर  इन  बत्तीस विद्वानों के बहुमूल्य एवं सारगर्भित विचार पसंद आएगें ।

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