सोमवार, 11 अप्रैल 2011

हिन्दी कथा साहित्य में पारिवारिक विघटन -- डॉ. वीरेन्द्र सिंह यादव

समकालीन कथा साहित्य में सम्बन्धों की त्रासदी का चरम आख्यान

डॉ कुमारेन्द्र सिंह सेंगर पुस्तक हिन्दी कथा साहित्य में पारिवारिक विघटन लेखक डॉ. वीरेन्द्र सिंह यादव प्रकाशक नमन पब्लिकेशन्स,4231/1 अंसारी रोड , दरियागंज,नई दिल्ली

मूल्य रु. 450.00

पृष्ठ : 14+175=189

ISBN - 81-86400-001-X एक ऐसा व्यक्तित्व जो न किसी तरह का दिखावा करता है और न ही अपने विचारों को किसी पर आरोपित करता है वह केवल संघर्ष-स्नात चेहरा वाला व्यक्तित्व जिसने अपने श्रम-बिन्दुओं से अपनी जिजीविषा को वह विशिष्ट पहचान दी है जो किसी विरले को ही प्राप्त होती है। वह व्यक्तित्व है डॉ. वीरेन्द्र सिंह यादव का जो डी. वी. महाविद्यालय में हिन्दी के वरिष्ठ प्रवक्ता हैं और समकालीन साहित्यिक, सामाजिक एवं राजनीतिक समस्याओं पर अपनी पैनी एवं सक्रिय दृष्टि रखते हैं। डॉ. वीरेन्द्र सिंह यादव की नवीन पुस्तक हिन्दी कथा साहित्य में पारिवारिक विघटन, चौदह अध्यायों में विभाजित इलाहाबाद विश्वविद्यालय की डी. फिल. उपाधि के लिए स्वीकृत शोध प्रबन्ध का परिष्कृत भाग है। युवा विद्वान लेखक डॉ. वीरेन्द्र यादव अपनी भूमिका में इस पुस्तक के बारे में कहते हैं कि यह पुस्तक मेरे प्रारम्भिक चिंतन का ब्लू प्रिन्ट मात्र ही है अर्थात् यह पुस्तक मेरे व्यवस्थित दृष्टिकोण या दृष्टि निर्माण की प्रक्रिया में आरम्भिक कड़ी मानी जा सकती है। कुल मिलाकर यह कहा जाए तो उचित ही होगा कि अभी इसका विस्तार एवं परिमार्जन होना शेष है। यह लेखक की व्यक्तिगत सोच ही कही जायेगी क्योंकि यह उनकी पहली पुस्तक है और मेरा मानना है कि इस पहली पुस्तक में ही लेखक का इतना गम्भीर चिंतन झलकता है कि जिसमें सम्पूर्ण सामाजिक यथार्थ का युगबोध परिलक्षित होता है। मैं शिक्षक का सर्वप्रथम गुण समझता हूँ उसका आकर्षण। वह आकर्षण चाहे शिक्षक के रूप में हो, साहित्यकार के रूप में हो, वक्ता के रूप में हो, चाहे व्यक्ति के रूप में। अंग्रेजी में एक विद्वान ने कहा भी है कि । ज्मंबीमत उनेज इम ेमस िमििनसहमदज अर्थात् एक शिक्षक में दीप्ति होना आवश्यक है। दीप्तिहीन शिक्षक किसी को उत्कृष्ट नहीं कर सकता। डॉ. वीरेन्द्र यादव वाक सिद्ध हैं। ‘‘आपको वाक शक्ति मिली है इसलिये जब वे बोलते है। तब उन्मुक्त होकर दीप्ति के साथ सबको प्रभावित करते हैं।चौदह अध्यायों में विभाजित इस पुस्तक की यात्रा पारिवारिक विघटन: समस्या एवं समाधान से आरभ होकर हिन्दी कहानियों एवं उपन्यासों की यात्रा से इसका अन्त होता है। पारिवारिक विघटन की समस्या को लेकर डॉ. वीरेन्द्र यादव का अपना एक विशिष्ट निष्कर्ष इन रचनाओं के लेखन के सन्दर्भ में दृष्टिगत रखते हुये आया है। युवा विद्वान लेखक का मानना है कि वर्तमान संक्रमणशील समाज में मूल्य विघटन की प्रक्रिया से सम्बन्धों में बिखराव आ रहा है और आज सम्बन्धों को किसी ठोस धरातल पर स्थापित करना कठिन होता जा रहा है। आज सभी सम्बन्ध एक दबाव की नियति से गुजर रहे है तथा मानव मन आस्था, विश्वास एवं भावनात्मक गहराई के अभाव में कमजोर होता जा रहा है। प्रेम सम्बन्ध कंुठाओं के शिकार हो रहे हैं। दाम्पत्य सम्बन्धों में मुक्त भोग एवं अहम का विस्फोट हो रहा है तथा अन्य पारिवारिक सम्बन्ध आर्थिक अभावों एवं भावनात्मक लगाव की कमी के कारण कृत्रिम और मशीनी होते जा रहे है। उच्चतर मूल्यों में आस्था पारिवारिक सम्बन्धों को विकृत कर रही है। मैत्री सम्बन्ध गहन, संवेदना, पारस्परिक समझ और सहानुभूति के अभाव में समय काटने या सामाजिक औपचारिकताएं निभाने तक सीमित हो गये हैं। स्त्री -पुरुष के सम्बन्धों की यह स्थिति और परिणति पूरी कचोट भरी वेदना के साथ आज के कथा साहित्य में आकार पा रही है। पारिवारिक जीवन की विसंगतियों से उपजा यह पीड़ा बोध न केवल कथा साहित्य का ही विषय है वरन यह समूची पीढ़ी द्वारा भोगा जा रहा है यथार्थ का अनिवार्य सोपान भी है। विघटन के इस स्वरूप को डॉ. वीरेन्द्र सिंह यादव ने अपनी पुस्तक में विभिन्न रूपों में रेखांकित है जिनमें अकेलापन, परम्परागत मान्यताओं और नैतिक बोध का पतन, आधुनिक नारी के परिवर्तित जीवन के कारण ,वर्तमान में बदलते स्त्री पुरुष सम्बन्धों के कारण, आर्थिक दबाव एवं मूल्यों के पतन, पीढ़ी संघर्ष, अस्तित्व रक्षा एवं उत्कट जिजीविषा के साथ-साथ ऐतिहासिक ,सामाजिक, मार्क्सवादी, राजनीतिक घटनाओं के साथ व्यक्तिपरक व्यक्तिवादी स्वरूप के कारण भी पारिवारिक विघटन के स्वरूपों केा विश्लेषित एवं मूल्यांिकत करने का सफल प्रयास प्रस्तुत पुस्तक के माध्यम से किया गया है। लेखक का मानना है कि वर्तमान समय में आज मानवीय सम्बन्ध अपनी विस्फोटक स्थिति में आ गये हैं और नये परिवर्तनों की आहट के लिए हमें तैयार रहने के लिए सजग रहना होगा। प्रस्तुत पुस्तक समकालीन समस्यायों पर नई दृष्टि रखने वाले पाठकों के लिये महत्वपूर्ण होगी।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें