मंगलवार, 19 अप्रैल 2011

नई सहस्त्राब्दी का पर्यावरण, चिन्तन, चुनौतियाँ और समाधान--डॉ. वीरेन्द्र सिंह यादव

नई सहस्त्राब्दी का पर्यावरण चिन्तन
डॉ.पुनीत बिसारिया
पुस्तक - नई सहस्त्राब्दी का पर्यावरण, चिन्तन, चुनौतियाँ और समाधान
लेखक - डॉ. वीरेन्द्र सिंह यादव
प्रकाशक - ओमेगा पब्लिकेशन्स 4373/4 बी., जी. 4, जे. एम. डी. हाउस, मुरारी लाल स्ट्रीट, अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली
मूल्य - 1990.00 (दो भागों में)
पेज - 22 + 452 + 22 + 454 = 950
ISBN - 978-81-8455-238-8

कहते हैं कि सृजनात्मकता एक नैसर्गिक ऊर्जा है। इसका सम्बन्ध प्रकृति से होता है। पुराण एवं इतिहास इस तथ्य के साक्ष्य देते हैं कि मानव और प्रकृति आदिकाल से एक दूसरे से आन्योन्याश्रित रूप से सम्बद्ध रहे हैं। इन्हीं स्थितियों में कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो पैदा तो एक विशेष परिवेश में होते है लेकिन अपनी लगन, कर्मठता एवं विचार शक्ति के माध्यम से वैयक्तिक से निर्वैयक्तिकता की ओर अग्रसर हो जाते हैं। इसी स्वतंत्र चिन्तन की सोच को आपने जीवन में डॉ. वीरेन्द्र सिंह यादव ने लागू किया है।
पर्यावरण समस्या को समय-समय पर अपने शोधपरक दृष्टि में विवेचित एवं विश्लेषित करने वाले डॉ. यादव ने इसके संरक्षण एवं जागरूकता को लेकर कई पुस्तकों की रचना की है। अगली कड़ी के रूप में सद्यः सम्पादित दो खण्डों में नई सहस्त्राब्दी का पर्यावरण: चिन्तन, चुनौतियाँ एवं समाधान का प्रकाशन किया है। प्रथम खण्ड में नौ उपशीषर्कों के अन्तर्गत विभाजित एवं द्वितीय खण्ड में बारह उपशीषर्कों में विभाजित पुस्तक में पर्यावरण समस्या को गम्भीरता के साथ विवेचित एवं विश्लेषित किया गया है। प्रमुख उपशीर्षक-पर्यावरण की अवधारणा एवं प्रदूषण के विविध आयाम 21वीं शताब्दी की गम्भीर पर्यावरणीय चुनौती ग्लोबल वार्मिंग, पर्यावरण शिक्षा एवं जागरूकता, जल प्रदूषण एवं संरक्षण के विविध स्वरूप, औद्योगिक विकास के परिप्रेक्ष्य में पर्यावरणीय संकट एवं संरक्षण, पर्यावरण प्रबन्धन, संरक्षण एवं नीतियां, बाँध परियोजनाएँ एवं पर्यावरण प्रबन्धन जलवायु परिवर्तन एवं पर्यावरण प्रदूषण के विविध संदर्भ, विविध आयामों में पर्यावरण प्रदूषण का स्वरूप, संरक्षण और जागरूकता, साहित्य में पर्यावरण के विविध सन्दर्भ एवं प्रदूषण निवारण के समाधान, पर्यावरण और भारतीय अरण्य संस्कृति, जैव विविधता के विविध सन्दर्भ तथा उसका संरक्षण आदि विमर्शों को छूते हुए इस विश्वव्यापी समस्या पर शिद्दत के साथ चिंता व्यक्त की गयी है। कुल मिलाकर पुस्तक का जो निष्कर्ष है वह यह है कि यदि प्रकृति के इस असंतुलन को ठीक करना है साथ ही हमें सम्पूर्ण मानवता को मृत्यु की ओर रोकने से बचाना है तो पृथ्वी पर रहने वाले प्रत्येक नागरिक को जागरूक होना पड़ेगा और इसके लिये पर्यावरण शिक्षा सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर सकती है। पर्यावरण शिक्षा से तात्पर्य पर्यावरण संरक्षण में जन सहभागिता बढ़ाना है। इसके लिये वर्तमान में र्प्यावरण की समस्या व इसके संरक्षण की दिशा में चिंतन व सोच का होना लाजिमी हो गया है। आशा है प्रस्तुत पुस्तक पर्यावरण के संरक्षण एवं इसके भावी नियोजन में मील का पत्थर साबित होगी।


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