मंगलवार, 19 अप्रैल 2011

नई सहस्त्राब्दी में मानवाधिकार के विविध सन्दर्भ--डॉ. वीरेन्द्र सिंह यादव

मानवाधिकार के बहाने एक नई सीख
डॉ. अजय सिंह
पुस्तक - नई सहस्त्राब्दी में मानवाधिकार के विविध सन्दर्भ
लेखक - डॉ. वीरेन्द्र सिंह यादव
प्रकाशक - ओमेगा पब्लिकेशन्स 4373/4 बी., जी. 4, जे. एम. डी. हाउस, मुरारी लाल स्ट्रीट, अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली
मूल्य - 795.00
पेज - 24 + 304 = 328
ISBN - 978-81-8455-257-7

समसामयिक समस्याओं एवं वैश्विक स्तर पर घटित होने वाली घटनाओं पर अपनी पैनी दृष्टि रखने वाले आलोचक डॉ. वीरेन्द्र सिंह यादव ने अपने लेखन में आम-आदमी की चिंता एवं सरोकारों को गम्भीरता से उकेरा है।
इसमें कोई शक नहीं कि आज भारत सहित विश्व प्रत्येक क्षेत्र में प्रगति के नित नूतन शिखरों को चूम रहा है। उपभोक्तावादी संस्कृति एवं विभिन्न व्यवसायिकता की संस्कृति चारों ओर फैल रही है जो विकास एवं आधुनिकता की नई परिभाषाएं बनाती जा रही हैं। वहीं दूसरी ओर भारतीय एवं वैश्विक परिप्रेक्ष्य में देखने पर विभिन्न समस्याएं दृष्टिगोचर हो रही हैं। जिनमें प्रमुख रूप से नस्लीय भेदभाव, धार्मिक अधिकार, भाषाई अधिकार, लिंगभेद, पुलिस अत्याचार आदि। इन सबके कारण संवैधानिक मान-मर्यादा का हनन हो रहा है और संविधान में प्रदत्त मानव अधिकारों का उल्लंघन एवं हनन हो रहा है। वर्तमान में वैसे मानव अधिकार की अवमानना से सम्बन्धित अनेक घटनाएं घट रही है लेकिन भारत में इसकी संख्या उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही हैं। भारतीय परिप्रेक्ष्य में दलितों पर अत्याचार, बड़ी परियोजनाओं के कारण लोगों का विस्थापन, प्राकृतिक आपदाओं के कारण उसके पुनः बसाने की समस्याएं। बच्चों के साथ अमानवीय बर्ताव कराने सम्बन्धी कमी की समस्याएं ,जिसमें वैश्यावृत्ति के उकसाने की समस्याएं आज केन्द्र में हैं। कई राज्यों में भाषायी समस्या के कारण क्षेत्रीय हिंसा, कई राज्यों में आतंकवादी गतिविधियां, जेल में बलात्कार तथा पुलिस उत्पीड़न, महिला हिंसा, बंधुआ मजदूरी, अल्पसंख्यकों के प्रति किया जाने वाला उत्पीड़न ,अत्याचार एवं धार्मिक असहिष्णुता के गम्भीर प्रश्न जुड़े हुए है। इन्हीं सब चिंताओं एवं चिंतन को समेटे हुए डॉ. वीरेन्द्र सिंह यादव की प्रस्तुत देश के विभिन्न प्रान्तों से सम्बद्ध तैंतीस विद्वानों के विचारों से सम्बद्ध अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करती नजर आती है। मानवाधिकारों की विशद विवेचना प्रस्तुत करती इस पुस्तक को सम्पादक ने चार खण्डों में विभाजित किया है जिसमें प्रथम के तहत मानवाधिकार की अवधारणा एवम् विकास प्रक्रिया के तहत इसका मूल्यांकन किया गया है। दूसरे खण्ड के रूप में मानवाधिकारों की अवधारणा को महिलाओं के विशेष सन्दर्भ में रखकर महिला सशक्तिकरण की वास्तविकता एवं महिला शोषण ए वं भ्रूण हत्या के रूप में हो रहे अधिकारों के हनन की विवेचना की गई है। तीसरा खण्ड मानवाधिकार के तहत इसके चिन्तन एवं चुनौतियों और समाधान के राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में व्याखायित किया गया है जिसमें मानवीय सुरक्षा के लिए मानवाधिकारों में संरक्षण की बात शिद्दत के साथ की गयी है। अन्तिम चौथे खण्ड के रूप में नई सहस्त्राब्दी में मानवाधिकार के अन्तर्गत सूचना के अधिकार से लेकर विविध शास्त्रों में इसके संरक्षण एवं विकास की पड़ताल की गयी है। इस दृष्टि से देखा जाये तो प्रथम दृष्टया प्रस्तुत पुस्तक मानवाधिकारों को प्रोत्साहित एवं संरक्षण की दिशा में अपनी विशेष पहचान बनाती हैं।

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