मंगलवार, 19 अप्रैल 2011

नई सहस्त्राब्दी का आतंकवाद: संघर्ष के बदलते प्रतिमान--डॉ. वीरेन्द्र सिंह यादव

नई सहस्त्राब्दी में आतंकवाद के विविध स्वरूप
डॉ.उत्तरा यादव
पुस्तक - नई सहस्त्राब्दी का आतंकवाद: संघर्ष के बदलते प्रतिमान
लेखक - डॉ. वीरेन्द्र सिंह यादव
प्रकाशक - ओमेगा पब्लिकेशन्स 4373/4 बी., जी. 4, जे. एम. डी. हाउस, मुरारी लाल स्ट्रीट, अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली
मूल्य - 895.00
ISBN - 978-81-8455-255-3

डॉ. वीरेन्द्र सिंह यादव एक अच्छे अध्येता एवं शोधकर्ता के साथ-साथ एक परिपक्व लेखक हैं। समकालीन समस्याओं के उद्भट विद्वान के सृजन में मौलिकता एवं सारगर्भिता एक साथ देखने को मिलती है। उनके द्वारा सम्पादित सद्यः प्रकाशित पुस्तक नई सहस्त्राब्दी का आतंकवाद: संघर्ष के बदलते प्रतिमान में आपने अपने सम्पादकत्व में ऐसे अनेक तत्वों का पर्दाफाश किया जिन्हें पढ़कर किसी भी जागरूक व्यक्ति के होश उड़ सकते हैं - पुस्तक की मान्यता है कि भारत दुनिया का अकेला देश नहीं है जो आतंकवादी हमलों से ग्रस्त एवं त्रस्त है वरन् विश्व समेत एशिया आदि देशों में शान्ति शब्द का लोप सा हो गया है। भारत में आये दिन आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देते रहते हैं। भारत में एक के बाद होने वाले बम धमाकों से दहशत का माहौल है। अर्थात् वे सर्वत्र हैं, किन्तु महाराष्ट्र में वे सबसे प्रखर है। वे अक्सर रचनाधर्मी लोगों, फिल्म स्टारों अथवा लेखकों, कलाकारों को इसलिए निशाना बनाते हैं क्योंकि ऐसा करने से लोगों का ध्यान उनकी ओर जाता है ........ महाराष्ट्र में वे खुद को एक सेना विशेष की संज्ञा देते हैं तो उड़ीसा में भक्त के रूप में प्रचार प्रसार कर लोगों को मारते हैं। वहीं उत्तर-पूर्व में भाषायी समस्या के रूप में हमारा उत्पीड़न करते हैं तो उत्तर प्रदेश में नक्सली के रूप में हमारे समक्ष आते हैं ......... वास्तविकता यह है कि हमें आज उनके मजहब से भ्रमित नहीं होना चाहिए, क्योंकि वे समाज के लिए एक अभिशाप हैं। उनका मजबूत पक्ष यह है कि वे सरकारों से सांठगांठ कर कारगुजारी करते रहते हैं। शायद उन्हें यह दिखता है कि समाज उनसे टकराने की स्थिति में नहीं है। इन्हीं सब समस्याओं की पड़ताल करती प्रस्तुत पुस्तक में सात खण्डों के द्वारा पैंतालीस विद्वानों ने अपने विचार रखे हैं। प्रथम खण्ड में आतंकवाद का स्वरूप एवं प्रक्रिया, द्वितीय के तहत आतंकवाद के कारक, कारण और निवारण, तृतीय खण्ड में आतंकवाद के विनाशकारी खतरे, विशेषकर जम्मू कश्मीर राज्य के संदर्भ में, चतुर्थ खण्ड में भारतीय परिदृश्य में आतंकवाद की चुनौतियाँ, पाँचवें खण्ड में बदलते परिदृश्य में वैश्विक आतंकवाद, छठें भाग में आतंकवाद के समाधान में अग्रज एवं अनुज पीढ़ी के योगदान एवं सातवें खण्ड के द्वारा नई सहस्त्राब्दी में आतंकवाद के विविध मुखौटों के जिनमें साइबर आतंकवाद एवं जैविक आतंकवाद को रेखांकित किया गया है; जिसका शीघ्र अन्त होता नजर नहीं आ रहा है। कुल मिलाकर आतंकवाद के प्रमुख कारण क्या है और इसके भावी समाधान क्या हो सकते हैं। प्रस्तुत पुस्तक के माध्यम से इस पर गम्भीर चर्चा करने की कुशल सम्पादक डॉ. वीरेन्द्र सिंह यादव ने कोशिश की है। मैं ऐसी मानती हूॅ कि प्रस्तुत पुस्तक इक्कीसवीं सदी की सबसे बड़ी चुनौती आतंकवाद पर ब्रेक लगाती नजर आती है।










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