बुधवार, 20 अप्रैल 2011

नई सहस्त्राब्दी का महिला सशक्तिकरण अवधारणा, चिन्तन एवं सरोकार--डॉ. वीरेन्द्र सिंह यादव

नई सहस्त्राब्दी का महिला सशक्तिकरण अवधारणा, चिन्तन एवं सरोकार
अन्जू दुआ जैमिनी
पुस्तक - नई सहस्त्राब्दी का महिला सशक्तिकरण अवधारणा, चिन्तन एवं सरोकार
लेखक - डॉ. वीरेन्द्र सिंह यादव
प्रकाशक - ओमेगा पब्लिकेशन्स 4373/4 बी., जी. 4, जे. एम. डी. हाउस, मुरारी लाल स्ट्रीट, अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली
मूल्य - 2100.00(तीन भागों में )
पेज - 52 + 348 + 52+360+52+355=1219
ISBN - 978-81-8455-250-8

लोकतंत्र में प्रत्येक व्यक्ति को समान अधिकार प्राप्त हैं। यह एक सैद्धान्तिक बात है परन्तु व्यवहारिक जीवन में यह कितना प्रयुक्त हो रहा है यह जनसामान्य के बीच जाकर सहज रूप से देखा एवं परखा जा सकता है। मेरी समझ से प्रजातंत्र तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक उसमें आम आदमी की समान भागीदारी सुनिश्चित न हो। सीमित प्रजातांत्रिक शक्ति क्रांति एवं अव्यवस्था को जन्म देता है इसलिए यह आवश्यक हो गया है कि (विशेष रूप से आधी दुनिया की आबादी को लेकर) कि प्रजातंत्र में सबकी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए आमजन को उनके अधिकारों, कर्तव्यों तथा उनकी शक्ति के बारे में अवगत कराया जाये। इन सब गम्भीर प्रश्नों को शिद्दत के साथ उठाने का प्रयास बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी, प्रतिभा, सम्पन्न, भाषाविद् युवा साहित्यकार, लेखक, सम्पादक एवं समकालीन समस्याओं के मर्मज्ञ विज्ञान डॉ। वीरेन्द्र सिंह यादव को साहित्यकार जितने भी विशेषण दें वह कम ही हैं। आपके द्वारा सम्पादित तीन खण्डों में भारी-भरकम ग्रन्थ रूपी पुस्तक नई सहस्त्राब्दी का महिला सशक्तिकरण, अवधारणा, चिन्तन एवं सरोकार के माध्यम से आपने देश के विद्वानों से विचार आमंत्रित कर आधी दुनिया का स्याह यथार्थ व्यक्त किया है। प्रथम, द्वितीय, तृतीय खण्डों में सम्पादित इस ग्रन्थ में महिला सशक्तिकरण के विविध प्रतिरूपों को कई उपशीर्षकों में विभक्त किया गया है। उनमें प्रमुख इस प्रकार हैं - महिला सशक्तिकरण-मिथक एवं यथार्थ, महिला उत्पीड़न के समाजशास्त्रीय एवं मनोवैज्ञानिक आयाम, महिला सशक्तिकरण और दलित महिलाएं, महिला सशक्तिकरण एवं पंचायती राज व्यवस्था, राजनीति में महिलाओं की भागीदारी, स्वतंत्रता आन्दोलन में महिलाओं का योगदान, महिला सशक्तिकरण, आज, कल और आज, महिला सशक्तिकरण में शिक्षा की भूमिका, स्त्री विमर्श के साहित्यिक एवं सांस्कृतिक सरोकार, महिला सशक्तिकरण और महात्मा गाँधी, आरक्षण के परिप्रेक्ष्य में महिला सशक्तिकरण, कन्याभ्रूण हत्या का मनोविज्ञान, भूमण्डलीकरण के दौर में नारी, महिला सशक्तिकरण और सरकारी प्रयास आदि विषय महिलाओं की विकास एवं सफलता की कहानी तो बतलाते ही हैं साथ ही कई प्रश्न ऐसे अनुत्तरित भी छोड़े गये हैं जिनका सभ्य समाज से उत्तर भी मांगा गया है। पुस्तक की अवधारणा है कि प्रत्येक समाज अपने पूर्ववर्ती समाज को देखते हुए ही अपनी परम्पराएँ बनाता एवं बिगाड़ता है। केवल भारतीय समाज ही नहीं, बल्कि विश्व की किसी भी जाति, सम्प्रदाय वर्ग का समाज प्राकृतिक रूप से पुरुष सत्तात्मक, समाज (कुछ अपवादों को छोड़कर) रहा है और वर्तमान में भी हैं। यदि ऐसा न होता तो पाश्चात्य देशों में अनेक स्त्री लेखिकाओं/समाज से विभागों को नारीवादी की संज्ञा न दी गई होती और उन्हें पुरुषों द्वारा बनायी गयी अनेक परम्पराएं न तोड़नी पड़ती। उदाहरण के रूप में सेकेण्ड सेक्स की विश्व प्रसिद्ध फ्रांसीसी लेखिका सीमोन द वोऊवार जिन्हें 20वीं सदी में नारी मुक्ति आन्दोलन की क्या आवश्यकता थी ? संयुक्त राष्ट्र अमेरिका की वर्जीनिया कामन वेल्थ विश्वविद्यालय में दर्शन एवं धार्मिक अध्ययन विभाग में इस्लामी अध्ययन की प्रोफेसर डॉ. अमीना वदूद को कुरान एण्ड बुमेन री रीडिंग, द सीक्रेट टेक्स्ट फ्राम वुमेन प्रास्पेक्टिव नामक किताब लिखकर कुरान की रोशनी में मुस्लिम औरतों के अहम की जोरदार वकालत करने की क्या आवश्यकता है ? इसके साथ ही लज्जा, द्विखण्डित आदि सैकड़ों पुस्तकों की बंगला देशी लेखिका तस्लीमा नसरीन को निर्वासित करने की क्या आवश्यकता है ? इस सम्पादित पुस्तक में सैकड़ों ऐसी महिलाओं के उदाहरण भरे पड़े हैं जो स्त्री मुक्ति आन्दोलन के लिए आज भी प्रतिबद्ध है। हमें आशा है कि प्रस्तुत सम्पादित पुस्तक आधी आबादी के स्याह यथार्थ से तो रूबरू कराती ही है इसके साथ ही नई सहस्त्राब्दी के प्रथम-दशक की समाप्ति तक के दौर की सफलता एवं भविष्य की कहानी भी कहती नजर आती है। इस दृष्टि से यह पुस्तक जनसामान्य के पाठकों के लिए तो हितकर होगी ही। साथ ही आने वाली पीढ़ी के लिए एक आदर्श का रूप भी स्थापित करेगी। ऐसी मैं व्यक्तिगत मानती हूँ ।




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