
डॉ ममता आनन्द
पुस्तक - इक्कीसवीं सदी का दलित आन्दोलन: साहित्यिक एवं सामाजिक सरोकार
लेखक - डॉ. वीरेन्द्र सिंह यादव
प्रकाशक - राधा पब्लिकेशन्स 4231/1 अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली
मूल्य - 550.00
पेज - 24 + 285 = 309
ISBN - 81-7487-658-8-4
रचनाकार अपने समय, समाज व परिस्थितियों से प्रभावित अवश्य होता है, पर इसके बावजूद भी उसे अपने व्यक्तित्व व नैतिक मूल्यों को बचाकर रखना पड़ता है पर कभी कभी यह भी देखने में आता हैकि लेखक को दुनिया की सारी सच्चाई उधेड़कर समाज के सामने पूरी निडरता से रखनी पड़ती है। तभी उसके लेखक होने की अस्मिता बोध की अभिव्यक्ति होती है। इस दृष्टि से डॉ. वीरेन्द्र सिंह यादव के कुशल सम्पादन में सम्पादित पुस्तक इक्कीसवीं सदी का दलित आन्दोलन साहित्यिक एवं सामाजिक सरोकार में देश के छियालीस विद्वानों ने इसी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को वाणी प्रदान की गई है। प्रस्तुत पुस्तक को दो खण्डों में विभाजित किया गया है। प्रथम खण्ड में दलित आन्दोलन के साहित्यिक सरोकारों से सम्बन्धित आलेखों को रखा गया है और द्वितीय खण्ड में दलित आन्दोलन के सामाजिक सरोकारों की व्याख्या की गयी है।
प्रथम खण्ड में दलित आन्दोलन विशेषकर साहित्यिक परिप्रेक्ष्य में उसकी सीमाओं तथा परम्परागत साहित्य के समीक्षकों द्वारा लगाये गये विमर्शीय तिलिस्मों का फर्दाफाश किया गया है। विभिन्न लोक संस्कृतियों एवं विधाओं में चर्चित दलित आन्दोलन की विकास प्रक्रिया को इस खण्ड के द्वारा विद्वान प्राध्यापकों ने दलित -चिंतन एवं चेतना को व्याख्यायित किया है।
दलित आन्दोलन के सामाजिक सरोकार नामक इस खण्ड में दलित आन्दोलन के बढ़ते क्षितिजों को राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में रेखांकित किया गया है। सम्पादक की यह उद्घोषणा की आज दलित समाज से जुड़े लोग देश-विदेश के हर क्षेत्र में ऊँचे पदों पर आसीन हो गये हैं और अपने निश्चित क्षेत्र में सफलतापूर्वक कार्य कर रहे हैं। लेकिन सरकारों की (विशेषकर राज्यों की) भेदभावपूर्ण नीतियों (आर्थिक) के कारण जो लाभ एवं प्रोन्नति दलित समाज को मिलनी चाहिए वह उन्हें नहीं मिल पा रही हैं। यह चिंता एवं चिंतन का विषय है।
प्रस्तुत पुस्तक में विचार एवं स्वतंत्र अभिव्यक्ति की दृष्टि से सभी शोध आलेख अपनी विशेष छाप छोड़ते हैं। यह पुस्तक दलित चिंतन एवं परम्परा पर शोध कररहे उन सभी छात्रों एवं प्राध्यापकों के लिए उपयोगी तो होगी ही साथ ही सुधी पाठकों के लिए भी महत्वपूर्ण होगी जो सामान्यजन अर्थात हाशिए पर कर दिए गये लोगों की चिन्ता करते हैं।
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