मंगलवार, 19 अप्रैल 2011

भारतीय संस्कृति में पर्यावरण चिंतन के विविध आयाम-- डॉ. वीरेन्द्र सिंह यादव

भारतीय संस्कृति में पर्यावरण चिंतन के विविध सरोका
डॉ.रामेश्वर प्रसाद चतुर्वेदी
पुस्तक - भारतीय संस्कृति में पर्यावरण चिंतन के विविध आयाम
लेखक - डॉ. वीरेन्द्र सिंह यादव
प्रकाशक - ओमेगा पब्लिकेशन्स 4373/4 बी., जी. 4, जे.एम. डी. हाउस, मुरारी लाल स्ट्रीट, अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली
मूल्य - 600.00
पेज - 18 + 293 = 311
ISBN - 978-81-8455-241-6

मनुष्य की प्रगति का इतिहास प्राकृतिक परिवेश से उसके सामंजस्यपूर्ण व्यवहार की कहानी है इसमें कोई दो राय नहीं कि पर्यावरण ने अपने असंख्य-संगठित समुदायों के साथ मनुष्य जीवन को खुशहाल एवं सुखमय बनाने में अपना अमूल्य योगदान दिया है। इसके मूल में शायद मनुष्य का प्रकृति के प्रति सद्भाव एवं सम्मानपूर्ण रवैया प्रमुख कारण रहे हैं।
डॉ. वीरेन्द्र सिंह यादव के सूक्ष्म अन्वेषी दृष्टि में पर्यावरण को वैदिक संस्कृति में क्या स्थान है के माध्यम से देश के चौंतीस विद्वान लेखकों के द्वारा इस पर विशद विवेचन एवं विश्लेषण किया गया है। भारतीय संस्कृति मानती है कि इस देह की रचना पंचतत्वों (क्षिति, जल, पावक, गगन, समीर) से ही हुई है। हमारे वैदिक ग्रन्थों में इन्हीं पंच-तत्वों को मानव मात्र के लिए शुभ-अशुभ, अनुकूल एवं प्रतिकूल परिस्थितियों का सूचक भी माना गया है। चार खण्डों में विभाजित उपशीर्षकों के अन्तर्गत प्रथम के तहत वैदिक वाङ्मय में पर्यावरण स्वरूप एवं संरक्षण, द्वितीय में प्राचीन भारतीय पौराणिक ग्रन्थों में पर्यावरण शिक्षा, संरक्षण एवं जागरूकता, तृतीय खण्ड में भारतीय संस्कृति में पर्यावरण की प्रासंगिकता एवं उपादेयता तथा चतुर्थ खण्ड में वैदिक संस्कृति में पर्यावरण चिंतन के विविध आयामों विशेषकर यज्ञों के द्वारा र्प्यावरण संरक्षण कैसे किया जाये एवं ऋषि मुनियों के द्वारा दिए गए उपदेशों के माध्यम से इसके संरक्षण की विभिन्न विधियों तथा धार्मिक एवं नैतिक मान्यताओं के पीछे भी कहीं न कहीं पर्यावरण जागरूकता की छवि रही होगी। विवेचित एवं विश्लेषित किया गया है।
प्रस्तुत पुस्तक में सम्पादकीय के माध्यम से लेखक ने इस बात की चिंता व्यक्त की है कि भले ही हम भूमण्डलीकरण एवं चहुँमुखी विकास की चर्चा करें और अपने को प्रगतिशील होने का ढोंग करते रहें; लेकिन ऋषि मुनियों द्वारा प्रतिपादित उपर्युक्त धारा अर्थात् प्रकृति के प्रति श्रद्धा सम्मान की बात तो दूर रही इसको सहज अपनी सहयोगिनी एवं पूरक सत्ता के रूप में देखने-समझने की समाज एवं विश्व के पास दृष्टि नहीं है ? प्रस्तुत पुस्तक के माध्यम से पर्यावरण की अनसुलझी गुत्थी को सुलझाने का प्रयास इन विद्वान लेखकों ने की है।

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