बुधवार, 20 अप्रैल 2011

इक्कीसवीं सदी में मुसलमान चिन्तन एवं सरोकार--डॉ. वीरेन्द्र सिंह यादव

इक्कीसवीं सदी में मुसलमान चिन्तन एवं सरोकार
डॉ.सबीहा रहमानी
पुस्तक -इक्कीसवीं सदी में मुसलमान चिन्तन एवं सरोकार
लेखक - डॉ. वीरेन्द्र सिंह यादव
प्रकाशक - ओमेगा पब्लिकेशन्स 4373/4 बी., जी. 4, जे. एम. डी. हाउस, मुरारी लाल स्ट्रीट, अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली
मूल्य - 1500.00(दो भागों में )
पेज - 48 + 336, 50 + 331 = 765
ISBN - 978-81-8455-249-2

जिजीविषा, जीवटता, साहस, दृढ़ इच्छा शक्ति, आशा, आत्मविश्वास ही वे वस्तुएं है जो व्यक्ति की शक्तियों को जाग्रत करती हैं। डॉ. वीरेन्द्र सिंह यादव इन शक्तियों के पुंज से दिखते हैं। इसलिए वे लिखते और लिखवाते हैं। डॉ. वीरेन्द्र यादव निरंतर संकल्परत हैं कि सृजनात्मकता के क्षेत्र में गुणवत्ता का मापदंड प्रतिभा ही बनी रहे, चाटुकारिता नहीं। वास्तव में कठिन चुनौतियों के बीच जिस संकल्प शक्ति के साथ वे संस्कृति और साहित्य की रक्षा, सम्मान और सम्पुट के लिए कार्यरत हैं वह स्तुत्य है।
इक्कीसवीं सदी में मुसलमान: चिन्तन एवं सरोकार नामक दो खण्डों में प्रकाशित पुस्तक में लेखक ने देश के प्रथम खण्ड में तैंतीस विद्वानों के आलेख एवं द्वितीय खण्ड में तैंतीस विद्वानों अर्थात् छाछठ विद्वानों के लेखों का संग्रहकर भारतीय मुसलमानों के धर्म, संस्कृति, समाज, शिक्षा एवं राष्ट्र में उनके द्वारा दिए गए योगदानों को तो रेखांकित किया ही है साथ ही साथ मुस्लिम वर्ग के प्रति एक वर्ग विशेष में फैली भ्रान्तियों का भी प्रस्तुत पुस्तक में शमन करने की कोशिश की गयी है।
प्रथम एवं द्वितीय खण्ड में पुस्तक को नौ उपशीषर्कों में विभाजित किया गया है जिसमें इस्लाम धर्म एवं मुसलमान: अवधारणा, स्वरूप एवं परम्परा, मुसलमानों की सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक स्थिति, मुसलमान और आधुनिकता, साहित्य, कला, संस्कृति में मुसलमानों की दशा एवं दिशा, साम्प्रदायिकता एवं भारत, मुसलमान और स्त्री सम्बन्धी अवधारणा, कृतित्व के आइने में मुस्लिम समाज सुधारकों का योगदान, अल्पसंख्यक और भारतीय मुसलमान, इक्कीसवीं सदी में मुसलमान: चिन्तन के विविध आयाम के द्वारा मुसलमानों की उत्पत्ति एवं विकास प्रक्रिया को विस्तृत रूप से विवेचित एवं व्याख्यायित किया गया है। सम्पादकीय में डॉ. वीरेन्द्र सिंह यादव का मानना है कि विश्व के अन्य धर्मों की अपेक्षा इस्लाम ने ईश्वर की एकता पर इतना अधिक जोर दिया कि अन्य किसी धर्म से इसका मुकाबला नहीं किया जा सकता। इस्लाम ने घोषणा की - ‘अल्लाह के अलावा और कोई अल्लाह नहीं है। ‘‘वह ईश्वर की एकता की प्रेरणा को इस हद तक ले गया कि उसने एक धर्म को छोड़कर, अन्य धर्मों को भी अस्वीकार कर दिया। जो विश्व के लिए एक आदर्श उपस्थित करता है। इस्लाम जीवन के सब पहलुओं की एकता पर जोर देने के लिए प्रसिद्ध है। यह राजनीति और धर्म, कारोबार और पूजा के बीच कोई भेद स्वीकार नहीं करता। पाक कुरान के शब्दों में ‘‘सारी सृष्टि ही इबादत की जगह है। अर्थात् इस दृष्टि से देखा जाये तो इस्लाम में मानवतावाद की अवधारणा स्पष्ट रूप से दृष्टिगत होती है। साथ ही यह भी कुछ विद्वान लेखकों की राय की जो आरोप-प्रत्यारोप उन पर मुसलमानों पर लगते हैं उनका खण्डन जोरदारी से किया जाये। इस पुस्तक की मान्यता है कि और इस वर्ग के नौजवान पीढ़ी को शैक्षिक और सामाजिक उन्नति से परिपूर्ण करना होगा तभी अनेक रूकावटों के बावजूद इन जैसी अनेक समस्याओं पर काबू पाया जा सकता है। मैं आशा करती हूॅ कि प्रस्तुत पुस्तक न केवल शोधार्थियों एवं सामान्यजन के लिए उपयोगी बल्कि समाज एवं संस्कृति में रूचि रखने वाले अध्येयताओं के लिए भी खोजी दृष्टि पैदा करेगी।

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