मंगलवार, 19 अप्रैल 2011

प्राकृतिक आपदाएं एवं मानवीय प्रबन्धन के विविध स्वरूप--डॉ. वीरेन्द्र सिंह यादव

प्राकृतिक आपदाएं बनाम मानवीय प्रबन्धन के विविध सरोकार
डॉ. रंजना श्रीवास्तव
पुस्तक - प्राकृतिक आपदाएं एवं मानवीय प्रबन्धन के विविध स्वरूप
लेखक - डॉ. वीरेन्द्र सिंह यादव
प्रकाशक - ओमेगा पब्लिकेशन्स 4373/4 बी., जी. 4, जे.
एम. डी. हाउस, मुरारी लाल स्ट्रीट, अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली
मूल्य - 795.00
पेज - 19 + 325 = 344
ISBN - 978-81-8455-256-0

किसी भी प्रतिभा को शब्दों के चन्द लब्जों में कहना मुमकिन नहीं होता है, परन्तु पहचान देने के लिये उन्हें हम कोई नाम दे देते हैं। विद्वान भूगोलवेत्ता या प्रसिद्ध इतिहासविद् यह संज्ञा डॉ. वीरेन्द्र सिंह यादव के व्यक्तित्व पर सटीक न लगे परन्तु निश्चय ही एक लेखक एवं खोजपरक दृष्टि के कारण आप समसामयिक विषयों के मर्मज्ञ अध्येता की श्रेणी में आते हैं। प्रस्तुत सम्पादित ग्रन्थ प्राकृतिक आपदाएं एवं मानवीय प्रबन्धन के विविध स्वरूप नामक इस पुस्तक में विभिन्न सूचना एजेन्सियों एवं अनुसंधानकर्ताओं की रिपोर्टों के सर्वेक्षणों तथा अभिलेखागारों के सूक्ष्म विश्लेषण के द्वारा इसमें जो दुर्लभ सामग्री दी गई है। वह एक अमूल्य धरोहर के रूप में सदैव हमारे पास एक विरासत के रूप में पास रहेगी।
यह सच है कि प्राकृतिक विध्वंश को रोकना मनुष्य की सीमा के परे बात है। मगर समय पर सूचना मिलने और बेहतर प्रबन्धन से इन प्राकृतिक विपदाओं से होने वाली जान-माल को काफी हद तक कम किया जा सकता है। इसके अनेक उदाहरण हमें देखने को मिल जायेंगे क्योंकि हर आपदा हमें बर्बाद करने के साथ-साथ आगाह भी करती है, लेकिन हम इसकी परवाह तक नहीं करते। प्रस्तुत पुस्तक के माध्यम से सम्पादक ने उच्च शिक्षा से सम्बद्ध चौबीस प्राध्यापकों, भूगोलवेत्ताओं एवं पर्यावरणविदों के विचारों को रखकर इसे पांच उपखण्डों में विभाजित किया है। प्रथम खण्ड में आपदा प्रबन्धन के सैद्धान्तिक पहलुओं की चर्चा करते हुए इसके प्रारम्भ एवं रोकथाम की चर्चा की है। दूसरे खण्ड में आपदा प्रबन्धन के व्यवहारिक पहलुओं की चर्चा करते हुये सरकारी एवं गैर सरकारी स्तर पर इसके प्रबन्धन पर प्रकाश डाला गया है। तृतीय खण्ड के तहत आपदा प्रबन्धन और प्रशासनिक सुधारों पर विस्तार से चर्चा की गई है। चतुर्थ खण्ड में प्राकृतिक आपदाओं का अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभाव को रेखांकित किया गया है। पाँचवा खण्ड प्राकृतिक आपदा के विविध स्वरूपों एवं इसके विभिन्न प्रकारों का विश्लेषण करते हुए विभिन्न शोध पत्र इसकी त्रासदी को रोकने के लिए जनसामान्य को आगे आने के लिए आह्वान करते नजर आते हैं। विषय सामग्री की दृष्टि से हिन्दी में शायद यह पहली पुस्तक होगी जो शोधार्थियों, शोध अध्येताओं एवं इस विषय से सम्बद्ध विद्वानों को उपयोगी जानकारी प्रदान करेगी। ऐसी मेरी कामना है।

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