मंगलवार, 12 अप्रैल 2011

लोक संस्कृति के आइने में भोजपुरी भाषा (चिन्तन के विविध आयाम)--डॉ. वीरेन्द्र सिंह यादव


भोजपुरी भाषा का लोक संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में सिंहावलोकन

डॉ शम्स आलम

पुस्तक - लोक संस्कृति के आइने में भोजपुरी भाषा (चिन्तन के विविध आयाम)

लेखक - डॉ. वीरेन्द्र सिंह यादव

प्रकाशक - ओमेगा पब्लिकेशन्स 4373/4 बी. जी. 4, जे. एम. डी. हाउस, मुरारी लाल स्ट्रीट, अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली

मूल्य - 895.00

पेज - 24 + 393 = 417

ISBN - 978-81-8455-239-3


भोजपुरी साहित्य, कला, संस्कृति की मनोरम झांकी का अवलोकन कराने वाली डॉ. वीरेन्द्र सिंह यादव की सद्यः प्रकाशित पुस्तक भोजपुरी भाषा एवं लोकजीवन के सुःख-दुःख, हर्ष-विवाद, आशा-निराशा के श्वेत एवं श्याम पक्षों का उद्घाटन कर लोकसाहित्य आन्दोलन के विमर्श को एक नूतन आयाम देती नजर आती है। सात खण्डों में विभाजित विशेषकर लोक संस्कृति एवं भोजपुरी भाषा का उद्भव और विकास, भोजपुरी कथा साहित्य का अनुशीलन, भोजपुरी लोकगीतों में लोक संस्कृति के विविध आयाम, भोजपुरी भाषा में स्त्री विमर्श के मर्मस्पर्शी पहलू, भोजपुरी लोक कला और संस्कृति, कृतित्व के आइने में भोजपुरी चिंतकों के विविध सरोकार तथा भोजपुरी भाषा में चिंतन के विविध संदर्भों को व्याख्यायित एवं विवेचित पुस्तक में भोजपुरी के बढ़ते कदमों एवं महत्व को देश के विभिन्न प्रान्तों के उच्च शिक्षा से सम्बद्ध प्राध्यापकों ने अपने विचार रखे हैं। इन सभी लेखकों ने यह स्वीकार किया है कि भोजपुरी भाषा मात्र एक अंचल की भाषा न होकर इसका विस्तार सात समुन्दर पार तक भी है। अर्थात् बिहार, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश के महानगरों के अलावा भारत के बाहर नेपाल, मॉरीशस, फिजी, ट्रिनीनाद, गुयाना, सूरीनाम, वर्मा इत्यादि देशों तक इस भाषा व बोली का प्रचार-प्रसार है। इसमें कोई शक नहीं है कि हिन्दी भाषा के बाद भोजपुरी भारत में सबसे अधिक लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा है। यही कारण है कि अपनी आत्मीयता के कारण भोजपुरी भाषा विदेशों में अप्रवासियों की आत्मा में आज भी जीवंत है। भोजपुरी के हर क्षेत्र में बढ़ते स्वर्णिम कदम साहित्य, कला (विशेषकर सिनेमा जगत) संस्कृति को देखते हुए ऐसा लगता है अब भोजपुरी की उपेक्षा बहुत अधिक समय तक नहीं की जा सकती है और निश्चित ही इसका भविष्य स्वर्णिम होगा। हमें ऐसा विश्वास है कि प्रस्तुत पुस्तक लोक, कला, संस्कृति एवं भाषा विज्ञान में रूचि एवं शोधरत विद्वानों के लिए मील का पत्थर साबित होगी।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें