मंगलवार, 19 अप्रैल 2011

पर्यावरण: वर्तमान और भविष्य--डॉ. वीरेन्द्र सिंह यादव




पर्यावरण के बहाने समाज को कुछ समझाने का प्रयास
डॉ. अजीत सिंह राही
पुस्तक: पर्यावरण: वर्तमान और भविष्य
लेखक: डॉ. वीरेन्द्र सिंह यादव
प्रकाशक: राधा पब्लिकेशन्स 4231/1 अंसारी रोड,दरियागंज ,नई दिल्ली.2
मूल्य: रू. 400.00

पृष्ठ : 12+179=191
ISBN: 799.81.7487.639.1

युवा रचनाकार डॉ. वीरेन्द्र सिंह यादव साहित्य के क्षेत्र में अपनी कृतियों के माध्यम से अपनी सशक्त उपस्थिति को दर्ज कराते रहते हैं। उनकी वर्तमान कृति ‘पर्यावरण: वर्तमान और भविष्य’ समाज को आईना दिखाने का कार्य करती है। पृथ्वी पर संतुलित जीवन के लिए आवश्यक है कि वहाँ पर्यावरण का संतुलन स्थापित रहे। आज जब जनसंख्या विस्फोट के कारण पया्रवरण विनाश तेजी से हो रहा है तब इस बात की नितांत आवश्यकता है कि हम स्वार्थगत् लाभों को त्यागकर समाज हित के कार्य करें।
डॉ. वीरेन्द्र की यह पुस्तक पर्यावरण के विविध आयामों से परिचय करवाती हुई वास्तविकता को सामने लाने का प्रयास करती है। जीवन जीने की आपाधापी में मानव सही गलत की पहचान करना ही भूल गया है। उसने अपने प्रत्येक कदम को स्वार्थपूर्ति हेतु उठाना प्रारम्भ कर दिया है। बिना सोचे समझे कार्य करने की मानवगत् शैली के कारण समाज को पर्यावरण संकट का सामना करना पड़ रहा है। जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, रेडियोधर्मी प्रदूषण सहित तमाम तरह के प्रदूषण मानव प्रदत्त ही कहे जा सकते हैं।
पर्यावरण के बारे में विस्तार से बताती यह पुस्तक पर्यावरण के एक-एक पहलू पर प्रकाश डालती है। पर्यावरणीय समस्याओं की उत्पत्ति के पीछे छिपे कारणों को डॉ. वीरेन्द्र किसी सिद्धहस्त पर्यावरणविद् की तरह प्रकट करते हैं। प्रदूषण की उत्पत्ति हो अथवा उसकी वातावरण में मात्रात्मक उपस्थिति; पर्यावरण प्रदूषक हो अथवा प्रदूषण के स्रोत; मानव स्वास्थ्य पर प्रदूषण का प्रभाव हो अथवा प्रदूषण रोकथाम के उपाय सभी को विस्तार से चित्रों, तालिकाओं के माध्यम से प्रदर्शित किया गया है।
पुस्तक पढ़ते समय कई बार यह बड़ा ही भयावह सा प्रतीत होता है जबकि विभिन्न प्रकार के प्रदूषणों के कारण पृथ्वी पर मानव जीवन ही खतरे में पड़ जायेगा। यह कृति अपने आपमें इस कारण भी अनूठी कही जा सकती है क्योंकि पर्यावरण से सम्बन्धित तमाम सारी जानकारियाँ देने के साथ ही साथ यह पर्यावरण और मानव का आपसी सम्बन्ध भी स्थापित करती दिखती है।
यह गम्भीरतापूर्वक विचार किया जाये तो इस पुस्तक के द्वारा ज्ञान भण्डार में वृद्धि ही की जा सकती है। पर्यावरण कानून क्या है ? इसकी आवश्यकता क्यों पड़ी ? भारतीय संविधान के अनुसार राज्य एवं समवर्तीी सूची में पर्यावरण कानून किस प्रकार का है ? विभिन्न प्रदूषणों से सम्बन्धित कानून क्या-क्या हैं ? विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाओं की पर्यावरण-संरक्षण के प्रति क्या भूमिका है ? विश्व स्तर पर पर्यावरण-संरक्षण के क्या उपाय किये जा रहे हैं ? आदि-आदि ऐसे प्रश्न हैं जिनकी जिज्ञासा प्रत्येक मन में होती है। इन प्रश्नों के अतिरिक्त भी अनेक प्रकार की जिज्ञासाओं का समाधान लेखक ने बड़ी ही सहजता से किया है।
पर्यावरण सम्बन्धी विविध जानकारी उपलब्ध कराने के साथ ही डॉ. वीरेन्द्र ने एक प्रकार का अनूठा प्रयोग किया है। पुस्तक के अन्त में लेखक ने देश के प्रमुख समाचार-पत्रों में प्रकाशित गम्भीर पर्यावरणीय समाचारों को भी स्थान दिया है। लेखक के इस प्रयास से वे अछूते सन्दर्भ भी सामने आ सके हैं जो समाचार-पत्रों की सुर्खियाँ मात्र बनकर रहे जाते थे। निःसन्देह डॉ. वीरेन्द्र की यह कृति पर्यावरण संकट से उपजी पीढ़ा का प्रतिबिम्ब है जो समाज को कुछ बताने का, समझाने का एक प्रयास समझा जा सकता है।

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