शनिवार, 16 फ़रवरी 2013

भारत में भ्रष्टाचार : चिन्तन ,चुनौतियाँ और समाधान
डा0 आनन्द प्रकाश सिंह,
प्रवक्ता समाजशास्त्र विभाग
राजकीय स्नातकोत्तर महाविधालय गोपेश्वर, चमोली (उत्तराखंड)
पढ़ने में यह भले ही अटपटा सा लगे कि आज देश-दुनिया की विविधता खतरे में है चाहे वह भाषा हो, पहनावा हो या छोटी-छोटी संस्कृतियां हों। लेकिन वासतविकता यह है कि इस तथाकथित आधुनिकता ने पिछली दो-तीन सदियों में ऐसी समस्याओं को जन्म दिया है, जिनका कोर्इ सटीक निदान पाना मुशिकल है -बेकाबू मंहगार्इ, दहशतगर्दी का बोल-बाला, पुलिस नाफरमानी और राजनैतिक बेर्इमानी आज के भ्रष्टाचार की ऐसी कटु सच्चार्इयाँ हैं जो आज इन्सान को क्षुब्ध और हताश कर रही है। भ्रष्टाचार के सम्बन्ध में विचार करें ,तो विश्व सहित आज के भारत का मूल संकट यही है। डा0 वीरेन्द्रसिंह यादव का मानना है कि आज भ्रष्टाचार भारत में सिर्फ प्रशासनिक व्यवस्था का अंग मात्र  ही नहीं रह गया है बलिक वह पूरे समाज में व्याप्त है जो इस देश के समूचे समाजिक, आर्थिक विकास को अपाहिज और मृतप्राय बना रहा है।
  यह पुस्तक उच्च शिक्षा जगत के बत्तीस विद्वानों के विचारों को समेटे हुए तैंतीस अध्याय एवं छ:ह उपशीर्षकों में विभाजित है। जो इस प्रकार है भ्रष्टाचार की ऐतिहासिक  एवं वैशिवक पृष्ठभूमि : समस्याएँ एवं समाधान ,समाज, राजनीति ,प्रशासन एवं अर्थव्यवस्था में भ्रष्टाचार के विविध परिदृश्य,साहित्य में भ्रष्टाचार की अवधारणा एवं समाधान की दिशाएँ, संवैधानिक एवं व्यावहारिक  दृषिट से भ्रष्टाचार निवारण के प्रावधान, भारत में भ्रष्टाचार : चिन्तन, चुनौतियाँ और समाधान की दिशाएँ, बदलते  परिदृश्य में भ्रष्टाचार के विविध मुखौटे में विभाजित कर विषय सामग्री को अलग-अलग कर विस्तृत कलेवर प्रदान किया गया है। अपने-अपने क्षेत्र के लब्ध प्रतिष्ठ विद्वानों के द्वारा भ्रष्टाचार के बढ़ते विविध परिदृश्यों को विद्वानों ने बेनकाब किया है।
  इस पुस्तक में यह बताने की कोशिश की गयी है कि किसी भी समाज अथवा राष्ट्र में भ्रष्टाचार के कर्इ कारण होते हैं। भारत में भ्रष्टाचार की जडं़े जिस प्रकार फैल रही हैं वह कोर्इ एक दिन की घटना नहीं  है और न ही इसके पीछे कोर्इ सटीक कारण हैं। परोक्ष रूप से इसके लिए हमारा समाज, हमारी सामाजिक परिसिथतियां और हमारा प्रशासनिक ढांचा इसके लिए उत्तरदायीत्व है। वर्तमान में संकट की ओर ले जाने वाले इस नासूर की जड़ें हमारे इतिहास में भी विधमान हंै।   
           भ्रष्टाचार के प्रमुख कारणों में  से दो सौ वषाेर्ं की भारतीय गुलामी की दास्ता प्रमुख है जो हमारे कर्इ वर्तमान घावों और अभिशाप की मुख्य जड़ है। बि्रटिश कौम के पास अपनी र्इमानदारी और कार्यकुशलता के चाहे जितने भी उदाहरण हों लेकिन यह तथ्य बिलकुल स्पष्ट है कि वे बहुत भ्रष्ट और शोषक शासक थे। यह सत्य तथ्य है कि वे सिर्फ शासक के रूप में ही  भ्रष्ट नही थे वरन उनका अपना समाज भी इन विसंगतियों का सदियों से गहरा शिकार रहा। जब से अंगे्रजी का मानक साहित्य हमें उपलब्ध है,तबसे ही यह भ्रष्टाचार गाथा हमारे सम्मुख प्रकट होती रही है। कहा जाता है कि जो भी भारत के वायसराय   का कार्यभार संभालता था । वह प्रशासक  बहुत समृद्ध होकर अपने देश वापस लौटता था और इस समृद्धि में बहुत सा धन गैर कानूनी ढं़ग से प्राप्त किया गया होता था। इन्हीं बि्रटिश अफसरों ने धीरे धीरे अपनी अफसरशाही में भारतीयों को समिमलित करना शुरू  किया। वे भारत के भीतर नौकरशाहों का ऐसा वर्ग बनाते चले गए जो भारतीय हितों से ज्यादा बि्रटिश हिताें का पोशक था। भारत से कटे हुए इस  प्रभु वर्ग ने उस नौकरशाही के सभी अवगुण सीधे और दुर्भाग्य से स्वतंत्रता प्रापित के पश्चात भी शासन के उसी वर्ग के हाथ रह गया। उस नौकरशाही से प्राप्त विरासत आज के भारत में भ्रष्टाचार के प्रमुख कारणों में से एक है।
         प्रस्तुत सम्पादित पुस्तक देश भर के विद्वान प्राध्यापकों, बुद्धिजीवियों, साहित्य मनीषियों की लेखनी का प्रतिफल है जिन्होंने भ्रष्टाचार जैसे समसामयिक  एवं अति महत्वपूर्ण ज्वलंत विषय पर तार्किक एवं वैज्ञानिक दृषिट से चिन्तन-मनन कर अपने विचार रखे हैं। इस आशा के साथ कि प्रस्तुत सम्पादित पुस्तक  आम-जन के मध्य जिज्ञासा एवं उत्सुकता पैदा करने के साथ ही अपनी मौलिकता और निश्छलता से आधोपरान्तर जन-जीवन की अभिव्यकित को मुखर स्वर देती है।
पुस्तक का नाम- भारत में भ्रष्टाचार  : चिन्तन ,चुनौतियाँ और समाधान
संपादक-डा0 वीरेन्द्रसिंह यादव
पेज-18+338-356
प्ैठछ.978.93.81630.01.3
संस्करण-प्रथम.2011,मूल्य-895.00
पैसिफिक पबिलकेशन्स-एन.187 शिवाजी चौक, सादतपुर एक्सटेंशन,दिल्ली-110094

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