शनिवार, 23 फ़रवरी 2013

समतामूलक समाज एवम सामाजिक परिवर्तन के युगपुरूष : डा0 भीमराव अम्बेडकर

समतामूलक समाज एवम सामाजिक परिवर्तन के युगपुरूष : डा0 भीमराव अम्बेडकर
              
डा0 आनन्द कुमार खरे
 एसोसिएट प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, समाजशास्त्र विभाग
डी0 वी0 (पी.जी.) कालेज, उरर्इ(जालौन)

            समतामूलक समाज का सतना देखने वाले युवा आलोचक एवं संपादक-डा0वीरेन्द्र सिंह यादव ने इस  पुस्तक में यह स्पष्ट करने की कोशिश की गयी है कि  वर्ण-व्यवस्था के माध्यम से परम्परावादियों ने एक प्रकार की निर्णायक संस्Ñति और मनोवैज्ञानिक जीत हासिल कर ली है। शायद इसकी प्रतिक्रिया के कारण ही दलित चेतना पूर्णत: उभार पर है। और कहीं-कहीं अब सामाजिक परिवर्तन के इस दौर में यह दलितों के पक्ष में भी जा रही है। राजनीति ने वर्तमान दौर में दलितों को असीमित अधिकार दिए हैं और दलितों को इससे काफी राहत भी मिली है परन्तु कभी-कभी सनातनी व्यवस्था के शिकार कुछ दलित आज भी हो जाते हैं। इस व्यवस्था पर आक्षेप करते हुए डा0 अम्बेडकर का मानना है कि वर्तमान समय में दलितों के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती उनकी जातीय असिमता एवं आर्थिक सिथति को लेकर है क्योंकि जगतगुरू से लेकर छोटे-छोटे धार्मिक मठाधीशों तक किसी को भी इस बात की चिन्ता नहीं है कि दलितों को निरन्तर शोषण एवं उत्पीड़न से कैसे बचाया जा सकता है। समाज में उन्हें सम्मानजनक सिथति में कैसे लाया जा सकता है।
 इस पुस्तक में बाबासाहब के अनेक अनछुए पहलुओं को उजागर किया गया है। डा0भीमराव अम्बेडकर एक बहुआयामी व्यकितत्व के धनी थे। आपने न केवल दलितों व पिछड़ों के उद्धार के लिए आवाज उठार्इ बलिक उनके लिए ऐसे ठोस कार्य किए जो सामाजिक क्षेत्र में एक क्रांति के रूप में आज भी प्रासंगिक हैं। आज बाबा साहब डा0 भीमराव अम्बेडकर को केवल एक विषय संविधान निर्माता के रूप में ही नहीं बलिक दूसरे सुधारों के प्रति याद किये जाने की आवश्यकता है। बाबा साहब  अम्बेडकर ने भूमि और भू सुधार, Ñषि जोत के आकार और उससे जुड़ी समस्याओं, उपज और उसकी अलाभकारिता, श्रम, श्रमिक और औधोगिक विवाद, ट्रेड-यूनियन और उससे जुड़े विषयों पर भी अपने वेबाक विचार रखे। उन्होंने इन विषयों से जुड़ी समस्याओं को उजागर किया और इसके समाधानार्थ सुझाव प्रस्तुत किए। संवैधानिक सुधारों,शिक्षा क्षेत्र के सुधारों और सामान्य कानूनों को सबके लिए सार्थक एवं कारगर बनाने हेतु अपना पक्ष रखा, जो अनुकरणीय था और अभी भी है।
      बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर के बहुआयामी व्यकितत्व को उजागर करती प्रस्तुत पुस्तक के माध्यम से डा0वीरेन्द्र सिंह यादव ने इसे दस उपशीर्षकों में बाँटा है जिसमें व्यकित्व एवम कृतित्व के आर्इने में : डा0 भीमराव अम्बेडकर,  समतामूलक एवम सामाजिक परिवर्तन के प्रवर्तक : डा0 भीमराव अम्बेडकर, दलित विमर्श के विविध आयाम और डा0 भीमराव अम्बेडकर, दलित एवम नारी मुकित की अवधारणा और डा0भीमराव अम्बेडकर,धर्म की अवधारणा और डा0भीमराव अम्बेडकर,डा0भीमराव अम्बेडकर के सामाजिक ,राजनीतिक एवं आर्थिक विचार,परिवर्तन बिन्दु-अम्बेडकर, गांधी और माक्र्सवाद :एक विश्लेषण,डा0भीमराव अम्बेडकर और उनका दर्शन,डा0भीमराव अम्बेडकर और उनका शैक्षिक दर्शन,साहित्य के आइने में डा0 भीमराव अम्बेडकर, आदि के द्वारा बाबा साहब के अनेक पहलुओं को उजागर किया गया है।
           अनेक बेवाक टिप्पणियों को प्रस्तुत करती इस पुस्तक में प्रकाश डाला गया है। डा0 भीमराव अम्बेडकर ने भारतीय लोकतांत्रिक शासन प्रणाली की स्थापना में, जिस महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया, उनका यह कार्य भारत के इतिहास में यत्र-तत्र बिखरा पड़ा है। एक बार बम्बर्इ में बोलते हुए डा0 अम्बेडकर ने कहा था कि जहाँ मेरे व्यकितगत हित और देश के हित में टकराव होगा, वहां मैं , देश के हित को प्राथमिकता दूंगा लेकिन जहां दलित जातियों के हित,और देश के हित में टकराव होगा, वहां मैं दलित जातियों  के हित को प्राथमिकता दूंगा, यह एक ऐसे व्यकित की आवाज है जो तत्कालीन समय में गांधी जी की विपरीत दिशा में अग्रसर थे। भारतीय इतिहास में उनकी इस कर्मठता को भुलाया नहीं जा सकता है। बाबा साहेब जितना कुछ भी कर या करा पाये यह उनकी महान देन की श्रेणी में आता है। उनके धर्म परिवर्तन के मुददे पर महात्मा गांधी ने स्पष्ट कहा था। डा0 अम्बेडकर ऐसा कुछ भी नहीं करेंगे जो राष्ट्र के विरूद्ध हो। कुछ भी हो वे सच्चे राष्ट्रभक्त हैं।  सही नहीं उनके धार्मिक आंदोलन को समझते हुए स्वयंसेवक सरसंघ चालक श्री गोलबलकर जी ने लिखा भूतकाल में समाज सुधार के लिए भगवान बुद्ध ने प्रचलित रूढि़यों की आलोचना की थी। समाज से कटकर अलग होने के लिए नहीं। वर्तमान काल में भी डा0 बाबासाहब अम्बेडकर ने समाज की भलार्इ के लिए धर्म के हित के लिए, हमारे चिरंजीवी- समाज को दोष मुक्त शुद्ध बनाने की दृषिट से काम किया। समाज से कटकर अन्य पंथ बनाने की दृषिट से नहीं। अतएव डा0 अम्बेडकर भगवान बुद्ध के उत्तराधिकारी हैं ! इस स्वरूप से उनकी पवित्र स्मृति में हार्दिकता अर्पित करता हूँ।
     इन्हीं कुछ नयी कुछ पुरानी व्यवस्थाओं की बहस को छ्रेड़ती  यह पुस्तक डा0 अम्बेडकर  को एक महान मानावतावादी के साथ-साथ उच्चकोट का देशभक्त  सिद्ध करती यह पुस्तक तुलनात्मक प्रसंगों के कारण आकर्षण का केन्द्र है। बाबा साहब के बारे में अधिक जानकारी रखने वालों को यह पुस्तक अवश्य पढ़नी चाहिए।

पुस्तक का नाम- समतामूलक समाज एवम सामाजिक परिवर्तन के युगपुरूष : डा0 भीमरावअम्बेडकर
 संपादक-डा.वीरेन्द्रसिंह यादव
पेज-24+464-488
ISSN.978.81.8455.282.9
संस्करण-प्रथम.2011
मूल्य-995.00
ओमेगा पबिलकेशन्स,43784ठएळ4एजे.एम.डी.हाउस,मुरारी लाल स्ट्रीट,अंसारी रोड, दरियागंज, नर्इ दिल्ली-110002











 

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