शनिवार, 23 फ़रवरी 2013

आतंकवाद का अन्तर्राष्ट्रीय परिदृश्य : चुनौतियां और समाधान की दिशाएं

आतंकवाद का अन्तर्राष्ट्रीय परिदृश्य : चुनौतियां और समाधान की दिशाएं

कुमार यशवन्त,बुन्देलखण्ड विश्वविधालय, झांसी (उ0प्र0)
      आतंकवाद बुद्धि के दुरूपयोग तथा विज्ञान और प्रौधोगिकी के अभिशाप का एक भयंकर परिणाम है। वास्तव में यह पूर्व में न देखे गये एक ऐसे अजनबी दानव की तरह है जिसकी पहुँच दुनिया के प्रत्येक कोने में है जो किसी भी देश के सबसे शकितशाली व्यकित या सशक्त संस्था को ध्वस्त करने में सक्षम है। इसके एजेन्ट या कार्यकर्ता जिन्हें हम आतंकवादी कहते हैं,सभी स्थानों पर अपनी उपसिथति दर्ज कराकर क्रूरतम आघात करते हैं और उस राष्ट्र के महत्वपूर्ण ठिकानों एवं गतिविधियों को विकलांग बना देते हैं। यही नहीं सम्पूर्ण राष्ट्र की सामूहिक बुद्धि जिन ठिकानों को सुरक्षित समझती है, वहाँ भी अप्रत्याशित रूप से ये हमला करते हैं और आतंकवाद के शिकार राष्ट्र स्वयं को शकितहीन एवं निर्बल पाते हैं। आतंकी हमला या आतंकवाद का सम्बन्ध किसी जाति, धर्म या सम्प्रदाय के हित के लिए नहीं वरन सम्पूर्ण मानवता के विनाश के लिए है । सारांश यह है कि मामला चाहे अमेरिका पर आतंकी हमले का हो या भारतीय संसद पर हमले का या फिर बस, ट्रेन, वायुयान, धार्मिक या भीड़ भरे स्थानों या आर्थिक ठिकानों को तहस नहस करने का इन सबके पीछे सिर्फ आतंकवादियों का एक ही उद्देश्य निहित रहता है कि भय द्वारा अपनी मांगों की पूर्तिकर संगठन का परचम फहराना। इन्हीं कुछ सरोकारों को विश्लेषित करती यह पुस्तक आतंकवाद का इन्साइक्लोपीडिया है। सात खण्डों में एवं 36विद्वानों के लेखों में  विभाजित आतंकवाद का विश्वव्यापी स्वरूप : कारक,कारण एवं निवारण,भारतीय परिदृश्य में आतंकवाद :चिन्तन,चुनौतिया और समाधान,साहित्य में आतंकवाद का दंश एवं उन्मूलन के उपाय, आन्तरिक सुरक्षा के समक्ष प्रमुख चुनौती :आतंकवाद एवं नक्सलवाद,सामाजिक समरसता एवं मानवाधिकारों का दुश्मन: आतंकवाद,धर्म एवं आतंकवाद : एक अवलोकन,  बदलते परिदृश्य में आतंकवाद के विध्वंशक चेहरे में आतंकवाद के विविध मुददों पर विस्तार से प्रकाश डाला गया  है।
           सामाजिक समस्याओं को केन्द्र में रखकर सृजन करने वाले डा0वीरेन्द्रसिंह यादव अपने सृजन में हमेशा भारत के उत्तरोत्तर विकास की बात करते हैं-वर्तमान में प्रकाशित डा0वीरेन्द्रसिंह यादव द्वारा सम्पादित इस पुस्तक में यह स्पष्ट करने की कोशिश की गयी कि  आतंकवादी अपना रौब जमाने के लिए दुनिया के सबसे शकितशाली कहे जाने वाले राष्ट्र के दिल पर (न्यूयार्क शहर के वल्र्ड टे्रड सेंटर पर) हमला करते हैं तो वहीं विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत की संवैधानिक एवं नीति निर्माण की सस्ंथा संसद पर आघात करने में नहीं चूकते हैं। बात यहीं नहीं समाप्त होती है वो हमारे प्रतिषिठत वाणिजियक एवं धार्मिक संस्थानों और टे्रन, बस या व्यस्त बाजारों पर क्रूरवार करने में कभी नहीं चूकते। चाहे वह बम्बर्इ या जयपुर हो या अक्षरधाम का मंदिर हो या फिर हैदराबाद, गुहावटी, मालेगाँव जैसे बड़े शहर हों उनकी दृषिट में सब निशाने पर बने हुए हैं। किसी भी देश  की एकता, अखण्डता, सुरक्षा एवं प्रभुसत्ता को तहस नहस करना इनके लिए सामान्य सी बात होती है।
           वैशिवक परिदृश्य में यदि हम अवलोकन करें आतंकवाद की जड़ें मुख्य रूप से भारत एवं पाकिस्तान सहित सम्पूर्ण दक्षिण एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया, अफगानिस्तान, रूस, तजाकिस्तान, उजबेकिस्तान, चीन सऊदी अरब, मिस्र,एशिया के देशों व अफ्रीका के कुछ भागों में अत्यन्त गहरी हो गर्इ हंै। अर्थात अल्जीरिया से लेकर पाकिस्तान और बांग्लादेश होते हुए मलेशिया और इण्डोनेशिया समेत फिलीपीन्स तक इस्लामिक कêरवाद अपने पांव पसार रहा है। हालांकि विभिन्न देशों में आतंकवाद को लेकर मतभेद हैं, क्योंकि यदि कोर्इ पराजित देश स्वतंत्रता के लिए शस्त्र उठाता है तो वह विजेता के लिए आतंकवाद होता है। स्वतंत्रता के लिए भारतीय प्रयास अंग्रेजों की दृषिट में आतंकवाद था।
               भारतीय व्यवस्था पर चोट करती इस पुस्तक में और भी कर्इ प्रश्न उठाए गए हैं  जैसे कि राष्ट्र के प्रति समर्पित होने की भावना प्रशासकों में  तब अधिक प्रबल एवं उछाल मारने लगती है जब आतंकवादी किसी बड़ी घटना को अंजाम देकर अनेक मासूम निर्दोशों को अनाथ कर देते हैं। आखिर ऐसी सिथतियों में हमारे राष्ट्र निर्माताओं को अपनी नीति में अचानक झोल क्यों नजर आने लगती है ? विभिन्न मंचों के माèयम से बड़े-बड़े वायदे अब हम यह नहीं सहेंगे, ऐसा नहीं होने देंगे, हम वैसा नही होने देंगे यह कहने के स्थान पर एक कठोर न्यायिक नीति की आवश्यकता क्यों नहीं महसूस करते हैं ? जिन आतंकवादी गतिविधियों को पूरी दुनिया देखती है अनेक साक्ष्य एवं प्रमाणों की उपलब्धता के बावजूद हमारी न्यायिक व्यवस्था में उनकी सुनवार्इ चलती रहती है क्या यह किसी आतंकवादी का मजहब देखकर उसके खिलाफ कानूनी कार्यवाही की जाये ? या फिर क्या मजहबी जुनून के लिए सभ्य समाज को बलि का बकरा बनने दिया जाये ? या सख्त कदम उठाकर आतंक जैसे दैत्य का खात्मा किया जाये ? आखिर उनकी सुनवार्इ की आवश्यकता क्या है ? उनको तुरन्त फाँसी क्यों नहीं दी जाती ? क्या आतंकवाद शांति वार्ताओं से सुलझने वाला है ? क्या हम यह अपेक्षा करें कि आतंकवादियों को क्षमादान से उन्हें अच्छा इंसान बनाया जा सकता है ? इन सब प्रश्नों के समाधान के लिए आपको पुस्तक पढ़नी पड़ेगी।
            इस सम्पादित पुस्तक में डा.वीरेन्द्रसिंह यादव एवं अन्य लेखकों की मान्यता एवं समाधान यह  कि इंसान किसी भी मामले को मुद्दआ   बनाकर आतंकवाद फैला सकता है तो फिर किसी भी मुद्दों   को लेकर प्यार,मोहब्बत, भार्इचारा क्यों नहीं फैला पाता ?वर्तमान की इन सिथतियों को देखते हुए एवं सम्पूर्ण विश्व की सम्प्रभुता को कायम रखने के लिए यह अत्यन्त आवश्यक हो गया है कि पूरी दुनिया के सभ्रान्त लोग, शासक, राष्ट्राध्यक्ष , प्रशासक, शिक्षाविद, राजनीतिज्ञ, साहित्यकार एवं विषय विशेषज्ञ इस गम्भीर समस्या को गम्भीरता से चिन्तन-मनन करें जिससे इस वैशिवक समस्या के कुछ सार्थक परिणाम सामने आयें।
पुस्तक का नाम- आतंकवाद का अन्तर्राष्ट्रीय परिदृश्य : चुनौतियां और समाधान की दिशाएं
संपादक-डा.वीरेन्द्रसिंह यादव
ISSN.978.81.8455.295.9, पेज-16+269-285
संस्करण-प्रथम.2011,मूल्य-750.00
ओमेगा पबिलकेशन्स,43784ठएळ4एजे.एम.डी.हाउस,मुरारी लाल स्ट्रीट,अंसारी रोड, दरियागंज, नर्इ दिल्ली-110002

 

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