सोमवार, 25 फ़रवरी 2013

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का रचना संसार : एक पुनर्मूल्यांकन


भारतेन्दु हरिश्चन्द्र  का रचना संसार : एक पुनर्मूल्यांकन
डा0 कमलेश सिंह
6, कटरा रोड,
इलाहाबाद - 211002
     
         भारतेंदु जी वास्तविक अर्थों में  हिन्दी के युग निर्माता थे। आपने साहित्य की लगभग सभी विधाओं को सृजित कर मन्डप की परिवर्तनशील प्रवृति के अनुरूप एक नया मोड़ दिया। उन्होंने समाज में नयी सोच को जन्म देकर अंधविश्वास एवं न्याय-अन्याय के प्रति जन समान्य को सचेत करने हेतु अपने साहित्य के द्वारा विशेष,नाटकों एवं काव्य के माध्यम से नर्इ चेतना जागृत करने की कोशिश की। उन्होंने अनेक नाटकों के माध्यम से चाहे वो अंधेरनगरी हो या वैशिवक हिंसा-हिंसा न भवति, प्रेम जोगिनी विषस्य विषमौषशम, चन्द्रावली, भारत दुर्दशा, नील देवी और सती प्रताप विधासुंदर, सत्य हरिश्चन्द्र, रानावली , पाखण्ड विडम्बन, धनंजय विजय, मुद्राराक्षस कर्पुर्मनजरी  मंजरी और दुर्लम बन्धु। इन सभी नाटकों में कहीं न कहीं कोर्इ न कोर्इ उददेश्य यथार्थ और आदर्श रहा है।वे अंग्रेजों के क्रिया कलापों के सख्त खिलाफ थे तभी तो उन्होंने एक रात में अंधेर नगरी नाटक लिख डाला,जिसका मंचन आज भी होता है। क्योंकि राजा (राजनीति) का दबाव है -निर्धन मजबूर है। गरीब अैर गरीब हो रहा है। अमीर और अमीर हो रहा है, असमानता की खार्इ बढ़ती चली जा रही है,
           भारतेन्दु जी के इन्हीं सरोकारों को ध्यान में रखते हुए इय सम्पादित पुस्तक को डा. वीरेन्द्र यादव ने सात भागों में  व्यकितत्व-कृतित्व के आइने में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र,  भारतीय राष्ट्रवाद, स्वाधीनता संग्राम और भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का नाटयादर्श : परिसिथतिया एवं प्रवृतितयां, भारतेन्दु युगीन काव्य : एक समेकित विश्लेषण, भारतेन्दु और हिन्दी प्रहसन की उत्कृष्ट खोज, भाव और कला की दृषिट से भारतेन्दु का व्यंग्य साहित्य, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के साहित्य में वस्तुपरकता एवं विषयपरकता की दृषिट से मूल्यांकन, विभाजित किया है।
       भारतेन्दु जी की लेखकीय पृष्ठभूमि एवं परम्परा को रेखांकित करते हुए पुस्तक का मानना है कि हिन्दी के जन्मदाता भारतेन्दु कोर्इ साधारण व्यकित नहीं थे ऐसा असाधारण साहित्यकार,विलक्षण प्रतिमा के धनी का जन्म लेना हम भारतीय एवं हिन्दी साहित्य प्रेमियों के लिए गर्व का विषय है। आज वक्त बदल गया है और 21वीं सदी का प्रथम दशक समापन की ओर है पर भारतेन्दु और उनका साहित्य आज भी प्रासंगिक एवं कालजयी प्रतीत हो रहा है इसमें कोर्इ शक नहीं है कि अंधेरनगरी की राजनीति 21वीं सदी में भी विधमान है, राजा की कुर्सी वही है पर राजा बदल गया है। निसंदेह घिसी पिटी परम्परा से हटकर साहित्य को जनजीवन से जोड़कर प्राचीनम और नवीन आदर्श और यथार्थ शिष्ट और लोक की दो  पृथक घाराएं लेकर चलने वाले भारतेन्दु ने प्राचीन युग का अनुगमन तो किया ही पर साथ ही आधुनिक युग का प्रवर्तक होने के नाते नवीन सृजनात्मकता से भी साहित्य को समनिवत किया। जो हिन्दी साहित्य के इतिहास में आज अजर अमर है।
        अंधेर नगरी में उठाए गए प्रसंग तत्कालीन समय में तो ज्वलन्त थे ही और आज भी हैं। भ्रष्टाचार उस समय भी था और आज भी है जो भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के वक्तव्यों से जाहिर हो रहा है। सन 1889में लिखा गया यह नाटक तत्कालीन राजाओं के कुशासन और उसके रजवाड़ों में प्रजा की दुर्दशा पर व्यंग्य करता ही है साथ ही कठोर अंग्रेजी शासन व्यवस्था पर भी प्रहार करता है इसके साथ ही यह प्रहसन अप्रत्यक्ष रूप से अंगे्रजी शासन व्यवस्था उसके रूप से अंगे्रजी शासन व्यवस्था उसके आर्थिक शोषण और न्याय व्यवस्था की कटु आलोचना भी करता है। भारतेन्दु का यह नाटक 21वीं सदी में भी समसामयिक लगता है। जैसे आज ही लिखा गया है अंतर है तो सिर्फ चेहरों का। पात्र और व्यवस्था वही है पर चेहरे बदल गये हैं।
ऐसे सेत एक से जहाँ कपूर कपास ऐस देश कुदेश  में कबहुं कीजै बाप भूमण्डलीकरण के इस युग में आज कौन किसी की सुनने वाला है, भागम भाग मात्र है, एक दूसरे से आगे निकल जाने की होड़ है जो जीता वही सिकंदर ।
       भारतेन्दु ने हिन्दी साहित्य के माध्यम से जो अपनी रचनाओं को जनता के बीच एक सवाल लिए खड़ा है ? यह न्याय व्यवस्था कब सुधरेगी,  असमानता कब दूर होगी। राजा (राजनीति) कब बैकुंठ जाएगा, गोवर्धनदास जैसे महात्मा कब आयेंगे। भारतेन्दु  हरिश्चन्द्र ने अपने साहित्य के माध्यम से लोगों के समक्ष कुछ सवाल उठाये और उन्हें सोचने पर मजबूर कर दिया और ऐसा प्रतीत होता है वे अपने युग से भी आगे के युग की नब्ज जान गये थे। तभी तो राजनीति,सामाजिक परिसिथतियों का यथार्थ चित्रण वे कर गये जो आज भी नर्इ सहस्त्राब्दी में जीवंत हैं। भारतेंदु जैसी तीखे व्यंग्य और प्रहार करने वाली रचनांए आगे आने वाली पीड़ी का कितना मार्गदर्शन कर पाएंगी यह तो वक्त बताएगा पर यह तो सच है कि आज आवश्यकता है भारतेन्दु जैसे व्यकितत्व की और आज की समस्याओं पर संजीदा साहित्य लिखने  की क्योंकि साहित्य समाज का दर्पण है, यह दर्पण जो एक नया मार्ग दिखाता है।
पुस्तक का नाम-भारतेन्दु हरिश्चन्द्र  का रचना संसार : एक पुनर्मूल्यांकन
 संपादक-डा.वीरेन्द्रसिंह यादव
पेज-16+277-293
ISSN.978.81.8455.290.4

संस्करण-प्रथम.2011
मूल्य-600.00
ओमेगा पबिलकेशन्स,43784/एळ4एजे.एम.डी.हाउस,मुरारी लाल स्ट्रीट,अंसारी रोड, दरियागंज, नर्इ दिल्ली-110002



 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें