सोमवार, 25 फ़रवरी 2013

आतंकवाद का समकालीन परिदृश्य : स्वरूप एवं समस्याएं

आतंकवाद का समकालीन परिदृश्य  : स्वरूप एवं समस्याएं
डा0 राजीव कुमार,
असिस्टेण्ट प्रोफेसर, हिन्दी विभाग,
के0के0 पी0जी0 कालेज, इटावा
     इस पुस्तक के माध्यम से डा0 वीरेन्द्र सिंह यादव का मानना है कि आतंकवाद आज अन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षा, समृद्धि और सिथरता के लिए ऐसी चुनौती बन गया है जिससे सम्पूर्ण विश्व किसी न किसी रूप में आहत है। अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद के विचारक विद्वान बि्रयां क्लेजर का ऐसा मानना है कि 20वीं शताब्दी का आंतकवाद अपने स्वरूप में विलक्षण है, यह समाज और राज्य के लिए कंलक जैसा है, यह अपने स्वरूप में वैशिवक है अर्थात विश्वभर के आतंकवादियों में आपसी भार्इ-चारा है क्योंकि वे मूलभूत विश्वासों एवं कार्यपद्धति में एक जैसे हैं । वे एक दूसरे के हथियारों की आपूर्ति में सहायता करते रहते हैं। सामान्यत: आतंकवादी संगठन के सदस्य सुशिक्षित युवक एवं युवतियाँ होती हैं। आतंकवाद की परम्परा पर दृषिटपात करते हुए राबर्ट कीडलैण्डर इसे पूरे फ्रांस की क्रानित से सम्बद्ध करते हुए जेकोबिन तानाशाही को इसका मूल बताते हैं। रूसी क्रानित ने आतंकवाद को प्रश्रय दिया। आगे चलकर चीनी नेता माओ-त्से-तुंग ने इसे विस्तार प्रदान किया। पुस्तक में लेखकों की राय है कि आधुनिक आतंकवाद का प्रारम्भ बीसवीं शताब्दी की शस्त्रीकरण की प्रक्रिया से माना जा सकता है। इस समय जो राजनैतिक प्रतिद्वनिद्वता चली उसमें दो विरोधी विचारधाराओं का अभ्युदय हुआ। फलस्वरूप सत्ता हेतु उत्पन्न संघर्ष ने भय का वातावरण विनिर्मित किया,इससे घातक हथियारों में वृद्धि हुर्इ और धीरे-धीरे इसी प्रवृतित ने आतंकवाद का रूप ले लिया।
      पुस्तक में कुछ प्रश्न  उठाए गए हैं  कि आतंकवाद के उत्पन्न होने के क्या कारण हैं ? इसका मुख्य उददेश्य क्या है ? क्या आतंकवादी तरीका अपनानें वालों के समक्ष अन्य मार्ग नही हैं ? यदि अन्य मार्ग हैं तो वे इन्हें क्यों नही अपनाते ? क्या आतंक के द्वारा निर्माण सम्भव है ? क्या न्याय पाने या अन्यायियों को दण्ड देने का यही तरीका है ? क्या स्वयं को न्याय का पुरोधा बताने वाले ये आतंकी मानवता या इंसानियत की अदालत में अपना बचाव कर सकते हैं ? ये कुछ ऐसे ज्वलंत प्रश्न हंै जिनसे समस्त विश्व रूबरू है। यदि आतंकवाद के उत्पन्न होने के कारणों पर विचार किया जाय तो यह स्पष्ट कहा जा सकता है कि इसके कोर्इ निशिचत कारण नहीं हैं। कुछ कारणों का रेखांकन अवश्य किया जा सकता है। अमेरिका की आतंकवाद सम्बन्धी नीति जिसे कुटिल नीति कहा जाय तो अधिक संगत होगा, आतंकवाद को पल्लवित करने हेतु सर्वाधिक उत्तरदायी है। स्वयं को विश्व की एकमात्र महाशकित बनाये रखने के लिए ही अमेरिका ने शीतयुद्ध के दौरान जो घातक नीतियाँ अपनार्इ उन्हीं का प्रतिफल है- अलकायदा एवं ओसामा बिन लादेन। मानवाधिकार हनन, बलात्कार, बंधुआ मजदूरी, बालश्रम, न्यायिक हिरासत में मौतें, पुलिसिया उत्पीड़न, बेरोजगारी, आर्थिक शोषण, शारीरिक-मानसिक दुव्र्यवहार, यौन शोषण, युद्ध हेतु हिंसक बनाया जाना, नशीले पदार्थों का सेवन, एडस, बच्चों का अत्यधिक उत्पीड़न आदि ऐसे कारक हैं जिनके द्वारा भी आतंकवाद को बल मिलता है। इसके समाधान का कोर्इ निशिचत उपाय नही हैं। उा0 वीरेन्द्र यादव की इस महत्वपूर्ण प्रस्तुत पुस्तक में अड़तीस विद्वानों एवं  पाच खण्डों के शीर्षक  आतंकवाद का वैशिवक परिदृश्य : एक विश्लेषण,आतंकवाद भारतीय परिदृश्य  : चुनौतिया एवं समाधान की दिशाएं,भारतीय परिदृश्य में आतंकवाद एवं नक्सलवाद : आंतरिक सुरक्षा के समक्ष प्रमुख चुनौती, आतंकवाद के उन्मूलन में  साहित्य  एवं संगीत की भूमिका ,वैशिवक एवं भारतीय परिदृश्य में आतंकवाद के विविध सरोकार में विभाजित है। अनेक संदेह एव रहस्य को उजागर करती प्रस्तुत पुस्तक में सत्य को उदघाटित किया गया है।
    एक सच्चार्इ यह भी है कि आतंकवाद के वैशिवक स्वरूप को देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि मुसलमान ही आतंकवादी घटनाओं में शामिल हैं किन्तु यह रूढ़ एवं एकाकी दृषिटकोण है जो मात्र पूर्वाग्रह पर आधारित है। अन्यथा इस्लाम शानित का मजहब है। यह अपने अनुयायियों को यह आदेश देता है कि बूढ़ों, बच्चों और औरतों को कत्ल न करो, किसी भी धर्मस्थल में बैठे हुए भक्तों व संन्यासियों का कत्ल न करो, दुश्मन को जिन्दा न जलाओ, किसी जख्मी पर हमला मत करो और ऐसे व्यकित से न लड़ो जो लड़ने की हालत में न हो। पुस्तक में आवाहन किया गया है कि आतंकवादी घटनाओं में आ रही अप्रत्याशित वृद्धि को देखते हुए मुसिलम समाज के बुद्धिजीवी एवं धार्मिक नेताओं को सामने आकर समाज एवं राष्ट्र की भलार्इ के लिए गहन जन संवाद करना चाहिए। कटटरपंथ को नकारते हुए उन्हें इंसानियत एवं असली मजहबी शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार करना चाहिए, जिससे गुमराह एवं भटके हुए मनुष्यों को राहे-खुदा पर लाया जा सके।वहीं दूसरी ओर लेखकों का नजरिया कुछ और है वह यह कि आतंकवादी घटनाओं को देखते हुए इनसे निपटने के सरकारी उपायों को शुतुरमुर्गी ही कहा जा सकता है क्योंकि अनेक बार ऐसा देखा गया कि केन्द्रीय एवं राज्य स्तरीय खुफिया तंत्रों में परस्पर सामंजस्य का अभाव है। आम लोगों को सरकारी तंत्र के इस रवैये को देखकर असंतोष ही होता है। अभी तक जितने भी आतंकी हमले हुए हैं उनसे सम्बनिधत एक भी मामला सुलझाया नही जा सका है। यह हमारी न्याय व्यवस्था एवं प्रशासनिक तंत्र की असफलता नही तो और क्या है ? आज भ्रष्टाचारी अधिकारियों और राजनेताओं में गठजोड़ हो गया है। हमारी सीमा सुरक्षा व्यवस्था भी उन्नत नही है जिससे आतंकवादी आसानी से देश में घुसकर आतंकी वारदात करके भ्रष्टाचारी अधिकारियों एवं राजनेताओं के सहयोग से बच निकलते हैं। प्रत्येक आतंकी वारदात के बाद हमारे मंत्री, प्रधानमंत्री एवं अन्य जिम्मेदार लोग आतंकवाद से कड़ार्इ से निपटने का झूठा आलाप करते हैं और देश तथा समाज को झूठा दिलासा दिलाते हैं। आखिर ऐसा कब तक होता रहेगा ? ऐसा कौन समाज है जो ऐसी घटनाओं के बाद सदैव के लिए अपने घर में दुबक जायेगा ? लोग बहादुरी दिखाने के लिए नही अपितु रोजी-रोटी की मजबूरी में भय एवं दशहत के माहौल में भी घर से निकलने को मजबूर हैं। यह अत्यन्त विचित्र है कि आम आदमी की इस सहज स्वाभाविक मजबूरी को ही हमारे नेता साहस की मिसाल कहते हैं।
  अनेक देशों का उदाहरण देते हुए सम्पादक का मानना है कि अमेरिका ने जिस तरह से आतंकवाद को युद्ध और हमला माना है, यही नीति भारत को भी अपनानी होगी। इधर के वर्षों में आतंकवादियों का दुस्साहस एवं पैठ बहुत बढ़ी हुर्इ दिख रही है। जब आतंकवाद की चर्चा की जाती है तब यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि समाज के मानवीय पक्षों के प्रति भी ध्यानाकर्षण किया जाय। आन्दोलन या क्रानित या आतंकवाद चाहे किसी भी तरह का हो उससे सर्वाधिक हानि मात्र मानवता या इंसानियत की ही होती है। इसलिए आतंकवाद के सभी प्रारूपों को इंसानियत के खिलाफ भयानक गुनाह मानते हुए इससे लड़ने के लिए ऐसे कठोर अन्तर्राष्ट्रीय कानून बनाये जाने चाहिए जो आतंकवादियों के भीतर खौफ पैदा कर सकें। हाँ, केवल कठोर कानून बनाना ही पर्याप्त नही है अपितु ऐसे नियमों-कानूनों को शिददत से अमली जामा पहनाया जाना चाहिए। प्रत्येक देशों की खुफिया एजेंसियों में तारतम्य स्थापित किया जाय जिससे आतंकवादी गतिविधियों की पूर्व सूचना मिल सके। नागरिकों में राष्ट्रीय भावना का प्रसार, सभी धर्मों के अनुयायियों में आपसी भार्इ-चारा, न्यायपूर्ण-भेदभाव रहित शासन प्रणाली, पारदर्शी एवं सर्वजन हिताय नीतियाँ आतंकवाद को निर्मूल  करने हेतु आवश्यक हैं। निर्दोष-निरपराध लोगों में दशहत पैदा करने वाले, इंसानियत की हत्या करने वालों का मकसद चाहे जो भी हो किन्तु उनकी ऐसी गतिविधियाँ बर्बरता के अतिरिक्त और कुछ नही कही जा सकतीं। भारत के लिए यह उचित समय है जब आतंकी बर्बरता के खिलाफ सम्पूर्ण राष्ट्र को एकजुट किया जाय। एकजुटता ऐसी हो जिससे आतंकवादियों ही नही वरन उनके समर्थकों एवं संरक्षणदाताओं को भी बेपर्दा किया जा सके।
   डा0 वीरेन्द्र सिंह यादव की विशेषता यह है कि मात्र एक साहित्यकार के रूप में नहीं अपितु विशिष्ट वैज्ञानिक परख के साथ वे समाज के प्रत्येक क्षेत्र से संबंधित ज्वलंत मुददों पर पुस्तकों  का सम्पादन कर अपनी विलक्षण प्रतिभा का प्रमाण प्रस्तुत कर चुके हैं एवं वर्तमान में उनका यह प्रयास जारी है।जागरूक पाठकों को प्रस्तुत पुस्तक अवश्य पसन्द आयेगी।
पुस्तक - आतंकवाद का समकालीन परिदृश्य  : स्वरूप एवं समस्याएँ
लेखक - डा0 वीरेन्द्र सिंह यादव
पेज -  16 + 303 - 319
ISSN - 978-81-8455-321-5
संस्करण-प्रथम.2012,मूल्य - 795.00
प्रकाशक - ओमेगा पबिलकेशन्स 43734 बी., जी. 4, जे. एम. डी. हाउस, मुरारी लाल स्ट्रीट, अंसारी रोड, दरियागंज, नर्इ दिल्ली


 

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