शनिवार, 23 फ़रवरी 2013

वैशिवक धरातल पर आतंकवाद : मानवता के समक्ष गम्भीर खतरा

वैशिवक धरातल पर आतंकवाद  : मानवता के समक्ष गम्भीर खतरा
डा0 अजय सिंह
एसो0 प्रो0-राज0 शास्त्र,हंडिया पी0जी0 कालेज.हंडिया, इलाहाबाद
         कोर्इ भी लेखक की लेखकीय संवेदना की पहचान तब और महत्वपूर्ण हो जाती है ज बवह सामाजिक समस्याओं के ज्चलंत मुददों को उठाकर अपनी लेखनी के माध्यम से वह समाज को जागृति करे। इसे यदि आलोचक डा0 वीरेन्द्र यादव की कृतियों से जोड़कर देखा जाए तो वह ऐसी समस्याओं को उठाते हैं जो सदैव समाज को जागरूक करने का कार्य करती है। इन्ही मुददों में आतंकवाद की समस्या मुख्य है। प्रस्तुत पुस्तक पाच अध्यायों आतंकवाद का वैशिवक परिदश्य : स्वरूप एवं समस्याएं,भारतीय परिदृश्य में आतंकवाद : चुनौतिया एवं समाधान की दिशाएं ,आंतरिक सुरक्षा के समक्ष प्रमुख चुनौती : आतंकवाद एवं नक्सलवाद के विशेष सन्दर्भ में,आतंकवाद के उन्मूलन में  साहित्य  एवं संगीत की भूमिका, बदलते परिदृश्य में आतंकवाद के विविध मुखौटे में विभाजित है। जिसमें आतंकवाद दैत्य से जीतने के अनेक उपाय दिए गए हैं।
          वैशिवक परिदृश्य की बात करें तो वर्तमान में आतंकवाद किसी न किसी रुप में सम्पूर्ण विश्व में अपनी पैठ बढ़ाता जा रहा है। साइबर आतंकवाद, सूचना आधारित आतंकवाद तथा वैज्ञानिक आतंकवाद के विविध रूपों में आज यह  फल-फूल रहा है। इसके साथ ही विचारकों, राजनीतिज्ञों, समाजशासित्रयों, नीतिनिर्धारकों ,पुलिस एवं सेना, इण्टरपोल अर्थात अन्तर्राष्ट्रीय पुलिस, संयुक्त राष्ट्र संघ, सार्क एवं विश्व के सभी देशों के लिये यह चिन्ता एवं चिन्तन का विषय है।
                     भारतीय परिप्रेक्ष्य में देखा जाये तो आतंकवाद का जन्म स्वतन्त्रता के पश्चात उस समय हुआ, जब भारत की रियासतों का विलय लौह पुरुष सरदार बल्लभ भार्इ पटेल द्वारा कुशलतापूर्वक किया जा रहा था और जम्मू कश्मीर रियासत के विलय में कुछ तकनीकी समस्याओं के कारण कार्य बिगड़ गया। अस्सी के दशक में कश्मीर घाटी एवं पंजाब में आतंकवाद ने अपना सर अधिक तेजी से उठाना शुरु किया।इसके बाद सिथतियाँ इतनी तेजी से बदलीं कि सीमा के अन्दर एवं बाहर इसके प्रचार-प्रसार ने दशानन की भाँति अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया है।
          शीत युद्ध की समापित के पश्चात अमेरिका द्वारा अमेरिकी वर्चस्व को बढ़ावा देने के उददेश्य से खड़े किये ढ़ांचे ने जिस तरह से सम्पूर्ण विश्व में हिंसा फैलार्इ है। वह नि:सन्देह मानव सभ्यता के भावी असितत्व पर प्रश्न चिह्रा के रूप में अंकित है। जहाँ एक ओर एक मुठठी में दुनिया को समेट कर मानव चांद एवं मंगल पर बसने की तैयारी में है वहीं दूसरी ओर पृथ्वी पर मानव सभ्यता के असितत्व को मिटाये जाने की तैयारी चल रही है। यह बड़े दु:ख की बात है कि विश्व में पूंजीवाद एवं समाजवाद की तरह आतंकवाद भी एक नकारात्मक विधारधारा के रूप में प्रतिषिठत हो गया है। विश्व के लगभग एक दशक के आतंकवादी हमले अमेरिका, भारत, पाकिस्तान इजरायल, फिलिस्तीन संघर्ष श्रीलंका का विद्रोह हो या चेचेन्या की उथल पुथल ये सभी घटनायें मानव के अमानवीय होने की कहानी बयाँ करती हैं  ।
                 पुस्तक में आतंकवाद की पृष्ठभूमि को जोड़ते हुए कहा गया है कि वर्तमान में वैशिवक मंदी का दौर चल रहा है। और इस बयार ने भारत को भी अपने आगोश में ले लिया है। इसमें कोर्इ दो राय नहीं कि भारत का विकास आतंकवाद के जहरीले डंक के मारने से बार-बार प्रभावित हो रहा है और यहाँ की अर्थव्यवस्था विभिन्न स्तरों पर प्रभावित हो रही है। सांस्कृतिक वैभव एवं अतीत का स्वर्णयुग कहा जाने वाला भारत जहाँ उत्साह से ओतप्रोत होकर अपने धार्मिक व राष्ट्रीय त्यौहारों को उत्साहपूर्वक कभी मनाता था। आज वह एक भयावह आशंका से हतोत्साहित रहता है। यही नहीं आज यह प्रश्न अति गम्भीर हो गया है कि भारत में होने वाले निरन्तर एक के बाद एक  ने यहाँ की सुरक्षा व्यवस्था पर भी प्रश्न चिन्â लगा दिये हैं। ऐसे समय में धर्म निरपेक्षता का नारा लिए राजनीतिक दल संकीर्ण स्वार्थ की राजनीति करते नजर आते हैं। जो नि:सन्देह ही चिंतनीय एवं निंदनीय है।
      पुस्तक में अनेक देशों के उदाहरण देकर भारतीय परिदृश्य में इसे समाप्त करने की वकालत की गयी है। अमेरिका में 11 सितम्बर को आतंकी हमला होने के बाद वहां की व्यवस्था इतनी चाक चौबंद हो गयी कि इसके बाद कोर्इ घटना नही घटी। लेकिन वहीं हमारे देश में आतंकी घटनाओं को निरन्तर दोहराया जा रहा है। स्पष्ट है कि हमने इस बड़ी चुनौती से लड़ने के लिये कोर्इ मुकम्मल ठोस नीति नहीं बनार्इ न ही सख्त कानून व्यवस्था, न ही चुस्त प्रशासन और सुविधा तंत्र को सक्रिय किया, इसके साथ ही न तो पड़ोसी देश पाकिस्तान को मुंह तोड़ जबाब देने की हिम्मत जुटार्इ। आतंकी संगठन किसी भी सुरक्षा, शांति व अखण्डता के लिये खतरा उत्पन्न कर किसी भी राष्ट्र में भय, आतंक व असुरक्षा का वातावरण बनाने का प्रयास करते हैं। विशेषकर युवावर्ग को आकर्षित कर उनके दिल व दिमाग को प्रभावित कर मर मिटने के लिये पे्ररित करते हैं। कभी वो जेहाद के नाम पर तो कभी वह धर्म एवं संस्कृति के नाम पर लोगों को भड़काकर अपनी गतिविधियों को अंजाम देते हैं। इतिहास में शायद भारत ही पहला ऐसा देश होगा जहा आतंकी हमलों से त्रस्त लोग अपने ही देश में शरणार्थी के रूप मे जीवन काटने को मजबूर हैं।
      अनेक चिंताओं को उजागर करती इस पुस्तक मान्यता है कि आतंकवाद चूंकि विनाशकारी नीति अपनाता है। इसलिये उसका सबसे बड़ा शिकार जनता होती है। दुनिया के दो सबसे बड़े आतंकी हमले न्यूयार्क सिथत वर्डट्रेड सेन्टर और भारत की आर्थिक राजधानी मुम्बर्इ पर हुये। मनोवैज्ञानिक दृषिट से भी यह स्पष्ट है कि किसी भी देश की अर्थव्यवस्था की क्षति अतिरिक्त सामाजिक क्षति मानी जाती है। जिसमें वहाँ के समाज में शांति, मेल जोल और सौहार्द पर सीधा प्रभाव पड़ता है।
                  वैशिवक परिदृश्य में दो महायुद्धों तथा शीत युद्ध की समापित के बाद आतंकवाद वृहद स्तर पर एक बहुआयामी परिघटना के रूप में समय-समय पर विभिन्न राष्ट्रों के सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक क्षितिज पर उदधृत हुआ जिसकी कार्य शैली में राजनीति तथा शकित परिधि में समयानुसार और परिसिथतियों के अनुसार परिवर्तन होता रहता है। राजनीतिक तुष्टीकरण एवं सामाजिक विषमता की विषवेल की जन्मस्थली और कर्म स्थली एवं स्वार्थ सिद्ध दृषिटकोण ही आतंकवाद को पैदा करता है। यह स्वार्थबद्धता की अभिव्यकित, क्षेत्रवाद, धर्माधंता, ऐतिहासिक एवं भौगोलिक घटनाएं, साथ ही सांस्कृतिक टकराव, आर्थिक विषमता, भाषायी भेदभाव एवं समन्वय की कमी, न्याय की दुर्बलता एवं अवमूल्यन तथा अपराध का राजनीतिकरण आदि ऐसे अनेक कारण हैं जो किसी भी राष्ट्र की अर्थव्यवस्था तथा दिशा में बाधा पहुँचाते हैं।
           यहाँ पर एक प्रश्न उठता लाजिमी है कि आखिर स्थानीय जनता के सहयोग के बिना यह कैसे फल-फूल रहा है ? इस प्रश्न का सीधा सा जवाब यही है कि नक्सली संगठनों के विरुद्ध पुलिस प्रशासन का सहयोग न करके भी हम जिन्दा रह सकते हैं किन्तु नक्सलियों का समर्थन न करना भी अपने जीवन से हाथ धोना है। कहने का मतलब है कि नक्सली संगठनों का समर्थन गाँव की भोली-भाली जनता की लाचारी है। ये नक्सली संगठन किसी भी रूप में सामान्य जन के लिए हितकर नहीं हैं और ये सामान्य जन बखूबी समझतें हैं किन्तु उनके समक्ष कोर्इ बेहतर विकल्प भी तो नहीं हैं क्योंकि संगीनों के साये में जीने वाली ग्रामीण जनता को पुलिस प्रशासन की ओर से सुरक्षा की कोर्इ स्थायी गारण्टी नहीं दिखार्इ देती। इसके बावजूद नक्सलियों के विरुद्ध अभियान में पुलिस प्रशासन की सफलता के पीछे कहीं-न-कहीं, किसी-न-किसी रूप में जनता का सहयोग प्राप्त है। इससे साफ जाहिर होता है कि नक्सलियों के बीच रहनेवाली आम जनता भारत के संविधान और लोकतंत्र में आज भी विश्वास रखती है।
       डा0 वीरेन्द्र सिंह यादव युवा लेखक एवं साहित्यकार के रूप में अनेक पुरस्कारों व अलंकृणों के साथ अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हैं। डा0 वीरेन्द्र सिंह यादव की विशेषता यह है कि मात्र एक साहित्यकार के रूप में नहीं अपितु विशिष्ट वैज्ञानिक परख के साथ वे समाज के प्रत्येक क्षेत्र से सामाजिक समस्याओं से संबंधित पुस्तकों का सम्पादन कर अपनी विलक्षण प्रतिभा का प्रमाण प्रस्तुत कर चुके हैं एवं वर्तमान में उनका यह प्रयास जारी है। प्रस्तुत पुस्तक इसकी अगली कड़ी है।
पुस्तक - वैशिवक धरातल पर आतंकवाद  : मानवता के समक्ष गम्भीर खतरा
लेखक - डा0 वीरेन्द्र सिंह यादव
पेज -  20 + 246 - 307
ISSN - 978-81-8455-300-0
संस्करण-प्रथम.2012,मूल्य - 795.00
प्रकाशक - ओमेगा पबिलकेशन्स 43734 बी., जी. 4, जे. एम. डी. हाउस, मुरारी लाल स्ट्रीट, अंसारी रोड, दरियागंज, नर्इ दिल्ली



 

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